गुजरात में बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने वालों से सतर्क रहने की अपील आम लोगों से की गई थी। दरअसल इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पंजाब की तर्ज पर बिजली—पानी के बिल माफ करने सहित अनेक लोक लुभावन घोषणाएं की गई थी। आज केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा अपना पांचवा और केंद्र की मोदी सरकार का नवंा वार्षिक आम बजट पेश किया गया है। जिसमें उन्होंने गरीबों के लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि कोरोना काल में देश में चलाई गई पीएम खाघ सुरक्षा योजना के अंतर्गत 80 करोड़ लोगों को 28 महीने तक मुफ्त राशन बांटा गया जिससे देश का कोई भी गरीब भूखा न सोए, साथ ही उन्होंने इस योजना की अवधि को 1 साल और बढ़ाने की जानकारी के साथ बताया कि इस पर 2 लाख करोड़ का खर्च आएगा। सवाल यह है कि जब देश में लॉकडाउन था और महामारी से लोगों के काम धंधे ठप हो गए थे और उन्हें जीने के लिए सरकारी मदद की दरकार थी तब सरकार ने उन्हें मुफ्त का राशन दिया यह सरकार का दायित्व था और मजबूरी भी, लेकिन अब अगर सरकार इसे एक साल और जारी रखने जा रही है तो क्यों? क्या अभी भी देश में कोरोना काल जैसी कोई आपात स्थिति है? अगर नहीं तो फिर सरकार द्वारा मुफ्त की रेवड़ियंा क्यों बाटी जा रही है। ठीक वैसे ही किसानों को भी सरकार द्वारा लोन पर जो छूट की सुविधा दी जा रही थी उसे भी एक साल तक जारी रखने की घोषणा की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो किसानों की आय दोगुनी करने का दावा लंबे समय से करते आ रहे हैं वह उनकी आय को कितना अधिक बढ़ा सके हैं यह सभी जानते हैं। वित्त मंत्री सीतारमण का कहना है कि भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति आय दोगुना से भी अधिक बढ़कर अब 1.97 लाख रुपए प्रति व्यक्ति हो चुकी है। अगर भारत के लोगों की आय 9 साल में 2 गुना हो गई है, क्या यह केंद्र सरकार का कोई चमत्कार है। किसानों की आय में इन 9 सालों में 2 गुना होना स्वाभाविक है क्योंकि किसान भी इसी देश में रहते हैं। सरकार ने उज्जवला योजना के तहत कितने मुफ्त कनेक्शन दिए, कितने लोगों को सम्मान राशि दी और कितनों को ऋण में छूट, यह अलग बात है पर क्या यह मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने की श्रेणी में नहीं आता है? सच यह है कि सरकार ही मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने का काम कर सकती है जो सत्ता से बाहर है वह भला कहां से और कैसे मुफ्त की रेवड़ियंा बांट सकता है? सत्ता में बने रहने या सत्ता पाने के लिए यह मुफ्त की रेवड़ियंा बांटना एक राजनीतिक परंपरा और मजबूरी बन चुका है। केंद्र सरकार का यह बजट अगले साल होने वाले चुनाव का बजट है। जो सरकार के पास रेवड़ियंा बांटने का एक मुफीद अवसर है। यह मुफ्त की रेवड़ी बांटने की परंपरा किसने शुरू की यह अलग बात है लेकिन अब हर किसी की मजबूरी बन चुका है यह मुफ्त की रेवड़ियंा बांटना।