बैक डोर भर्तियों का गुनहगार कौन?

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क्या सरकार संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के गलत को गलत नहीं मानती

देहरादून। विधानसभा और सचिवालय में बैक डोर भर्तियां पाने वालों को हाई कोर्ट की डबल बेंच के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराते हुए उनकी नियुक्तियों को रद्द करने के फैसले को सही बता दिया गया है। कोर्ट के इस फैसले को विधानसभा अध्यक्ष न्याय की जीत बता रही हैं। तथा मुख्यमंत्री धामी भी इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। लेकिन यह सवाल आज भी जस का तस बना हुआ है कि जब नियुक्तियों का तरीका गलत था तो इन नियुक्तियों को करने वाले कैसे सही हो सकते हैं? और अगर किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा कुछ गलत किया गया तो यह तो और भी गंभीर अपराध है। जब गलत तरीके से नौकरी पाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई तो इस गलत काम को अंजाम देने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं?
विधानसभा और सचिवालय में 2016 के बाद हुई जिन 228 नियुक्तियों को अवैध मानते हुए रद्द करने का फैसला विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी द्वारा लिया गया था उन्हें भले ही अब हाई कोर्ट की डबल बेंच द्वारा अवैध घोषित करते हुए सिंगल बेंच के फैसले पर रोक लगाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इस पर अपनी मुहर लगाते हुए उन कर्मचारियों की अपील को खारिज कर दिया गया हो जिसमें उन्होंने डबल बेंच के निर्णय को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब यह साफ हो गया है कि इन 228 कर्मचारियों की बहाली का रास्ता बंद हो गया है। लेकिन इन लोगों ने भी यह नौकरियां यूं ही नहीं पा ली थी इसके लिए न सिर्फ जोर—जुगाड़ किया गया था बल्कि अनेक चर्चाएं यह भी है कि कुछ लोगों ने इसके लिए खर्चा खराबी भी की थी। और अब इनके हाथ कुछ नहीं रहा है और उनकी स्थिति ट्टघर का घर लुटा और सर का सर पिटा, वाली है। यह कर्मचारी अब उस समय को कोस रहे हैं जब उन्हें यह नौकरी मिली थी या जिसने भी यह नौकरी दिलवाई थी। मगर सवाल यह है कि उन लोगों का क्या गया जिन्होंने उन्हें गलत तरीके से नौकरियां दी। वह आज भी सरकार में बड़े पदों पर बैठे हैं। क्या सरकार की नजर में उनका कोई कसूर नहीं है और अगर वह कसूरवार है तो उन पर कोई कार्रवाई अभी तक क्यों नहीं की गई है। या फिर क्या विधानसभा अध्यक्ष और सीएम उन पर कोई कार्रवाई करेंगे? और करेंगे तो कब करेंगे। विपक्ष भी अब मामले को लेकर मुखर है और भर्ती करने वालों पर भी कार्यवाही की मांग कर रहा है, एक दूसरा बड़ा सवाल उन भर्तियों की वैधता पर भी है जो 2016 से पूर्व की गई। अगर 2016 के बाद की गई भर्तियां अवैध है तो इससे पहले की वैध कैसे हो सकती हैं। भले ही उस एक मामले में न्यायालय ने मोहर लगा दी हो? यूं तो हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इन 2016 के बाद की भर्तियों को भी वैध ठहरा दिया था। क्या सरकार 2016 से पहले की भर्तियों पर भी कोई कार्यवाही करेगी या बड़ी अदालत जाएगी। सही मायने में अभी यह न्याय आधा—अधूरा ही न्याय है।

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