शौर्य दिवस पर शहीदों के पराक्रम की पराकाष्ठा को धामी ने किया नमन

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राजभवन के दरवाजे वीरांगनाओं के लिए हमेशा खुले हैः राज्यपाल

देहरादून। आज देश अपने उन वीर सपूतों की शहादत का सम्मान कर रहा है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों को बलिदान कर दिया था। कारगिल विजय दिवस (शौर्य दिवस) की 23 वीं बरसी पर आज सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गांधी पार्क स्थित शहीद स्मारक स्थल पर पुष्प चक्र समर्पित कर उनके पराक्रम की प्रकाष्ठा को नमन किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने शहीदों के परिवारों को सम्मानित किया।
1999 में कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा करने वाले पाकिस्तान को करारा जवाब देने के लिए लड़ी गई इस जंग में भारत के 527 जवानों ने अपनी शहादत देकर दुश्मन को खदेड़ कर ही दम लिया था। इस जंग में उत्तराखंड राज्य ने सर्वाेच्च बलिदान दिया था। सूबे के 75 जवानों ने अपनी जान कुर्बान कर भारत का मस्तक ऊंचा किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने इस विजय दिवस को शौर्य दिवस का नाम दिया था। शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने सर्वाेच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत सर्वाेच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया था।

मुख्यमंत्री धामी ने आज इन वीर सपूतों की शहादत को नमन करते हुए कहा कि कारगिल की जंग असाधारण परिस्थितियों में लड़ी गई जंग थी हमारे जवानों ने ऊंची पहाड़ियों की चोटियों पर बैठे दुश्मन के दांत खटृे करने के लिए विसंगतियों की चुनौतियों को भी चुनौती देते हुए यह जंग जीती थी। यह जवानों के अदम्य साहस और शौर्य की पराकाष्ठा ही थी कि 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल की चोटियों पर अपनी विजय पताका फहरायी।
यूं तो इस जंग में राज्य के सभी जिलों के जांबाजो ने अपनी शहादत दी लेकिन दून के सबसे अधिक 26 जांबाज सपूतों ने अपनी शहादत दी थी। राज्य के 37 शहीदों को इस जंग में उनके अदम्य साहस के लिए वीरता सम्मान से पुरस्कृत किया गया। उधर राज्यपाल गुरमीत सिंह ने भी आज कारगिल शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके शौर्य को याद किया गया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड वीरों की भूमि है। वह देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को नमन करते हैं। उन्होंने कहा कि शहीदों के सम्मान में कभी कमी नहीं आनी चाहिए उन्होंने कहा कि अगर शहीद वीरांगनाओं को कोई दिक्कत हो तो राजभवन के दरवाजे उनके लिए 24 घंटे खुले हैं।

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