बिजली संकट से जूझता ऊर्जा प्रदेश

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ऊर्जा प्रदेश उत्तराखंड इन दिनों गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है। सूबे का घरेलू बिजली उत्पादन घटने और गर्मी के सीजन में खपत बढ़ने के कारण पैदा हुए इस बिजली संकट के कारण जहां आम आदमी परेशान है वहीं राज्य के उघोग—धंधों पर भी इसका गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। राज्य को इस समय लगभग 45 मिलियन यूनिट बिजली की जरूरत है लेकिन 15 से 20 करोड़ रूपये की प्रतिदिन बिजली खरीद के बाद भी वह अपनी इस जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहा है। उसके पास अभी तमाम संसाधनों में से सिर्फ 39 मिलियन यूनिट बिजली उपलब्ध है जिसके कारण उसे भारी बिजली कटौती करनी पड़ रही है। राज्य को विघुत—गैस प्लांट से मिलने वाली 7.5 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन ठप होने से यह समस्या और भी गंभीर हो गई है यहां तक राज्य बिजली की खरीद पर 400 करोड़ से अधिक खर्च कर चुका है। चिंतनीय बात यह है कि अभी तो गर्मी की शुरुआत है मई और जून में क्या होगा? सरकार ने अब इस संकट के समाधान के लिए केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाई है। अभी राज्य को केंद्रीय पूल से 17 मिलियन यूनिट बिजली मिल रही है। तथा 15 मिलियन यूनिट बिजली अन्य राज्यों से खरीदी जा रही है। भले ही उत्तराखंड राज्य के गठन के साथ ही ऊर्जा प्रदेश बनाने के दावे किए जाते रहे हो लेकिन आज उसके पास अपनी बिजली के नाम पर सिर्फ 12 मिलियन यूनिट बिजली ही उपलब्ध है जबकि उसे जरूरत 45 मिलियन से भी अधिक बिजली की जरूरत है। इससे इस बिजली कटौती की स्थिति को ठीक से समझा जा सकता है। बीते कल मुख्यमंत्री धामी ने ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की बैठक ली और उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वह समस्या का समाधान लेकर उनके पास आए। अब बिजली कोई इन अधिकारियों के घरों में तो पैदा हो नहीं सकती है। जहां तक बिजली खरीद की बात है तो पड़ोसी राज्य पहले अपनी जरूरत पूरा करेंगे और फिर बची हुई होगी उसे ही वह बेच सकते हैं। वहीं दूसरी बात यह है कि बिजली खरीद पर सरकार कितना खर्च कर सकती है? उसकी भी एक सीमा है। ऐसा तो संभव हो नहीं सकता कि राज्य सरकार 100 करोड़ की रोज बिजली खरीद सके। सच यह है कि उत्तराखंड की पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार के नेतृत्व में जिन बिजली परियोजनाओं पर काम शुरू किया गया था उन्हें भाजपा की डा. निशंक के नेतृत्व वाली सरकार ने साधु संतों के विरोध पर पलीता न लगाया होता तो आज इस ऊर्जा प्रदेश की यह हालत न हुई होती। विपक्ष कांग्रेस अब इस मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी करने में झूठी है क्योंकि उसे पता है कि सरकार इसका कोई समाधान रातों—रात नहीं कर सकती है।

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