भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग

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उत्तराखंड में फिर एक बार पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा ने सत्ता संभाल ली है। कल संपन्न हुए शपथ ग्रहण में अभी मंत्रिमंडल को 8 सदस्यों तक ही सीमित रखा गया है। भले ही भाजपा नेतृत्व द्वारा मंत्रिमंडल गठन में सोशल इंजीनियरिंग का कमाल दिखाने की लाख कोशिशें की गई हो लेकिन भाजपा के 47 सदस्यीय विधानमंडल दल से सिर्फ 8 लोगों को मंत्री बनाकर क्या संतुलन लाया जा सकता था और कितने लोगों को संतुष्ट किया जा सकता था? यह एक बड़ा सवाल है। इस मंत्रिमंडल में सीएम सहित तीन ठाकुर और सौरभ बहुगुणा सहित तीन ब्राह्मण तथा रेखा आर्य व चंदन रामदास सहित दो दलित चेहरों व प्रेमचंद्र अग्रवाल को जगह देकर एक वैश्य को रखा गया है। अभी मंत्रिमंडल में तीन मंत्री पद खाली रखे गए हैं। यह पद क्यों खाली रखे गए हैं इसके पीछे के कारणों को भाजपा के रणनीतिकार ही जान सकते हैं। 2017 में भी भाजपा सरकार ने दो मंत्री पद खाली रखे गए थे जिन्हें अंत तक नहीं भरा जा सका था। जहां तक पुराने मंत्रिमंडल की बात थी उसमें कई वरिष्ठ और कई बड़े चेहरे हैं जिन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया है। इनमें मदन कौशिक, अरविंद पांडे, व सातवीं बार विधायक बने और बड़े मतांतर से जीत कर आने वाले बिशन सिंह चुफाल भी शामिल है। जो अब यह कह रहे हैं कि उनकी उपेक्षा क्यों की गई वह यह सवाल अपने नेतृत्व से पूछना चाहते हैं। लेकिन हम सभी यह भी जानते हैं कि अब भाजपा में किसी नेता द्वारा हाईकमान से कुछ न पूछने की हिम्मत है और न किसी की कोई बात सुनी जा सकती है। भाजपा में हाईकमान जो भी फैसला सुना दे उसे सिर झुका कर सिर्फ मानना होता है। धामी के इस मंत्रिमंडल में बुजुर्ग नेताओं को किनारे किए जाने और युवाओं को तरजीह देने की कोशिश की गई है। सतपाल महाराज इस मंत्रिमंडल में सबसे उम्रदराज है जबकि सौरव बहुगुणा जिन्हें उनके पिता के कारण मंत्रिमंडल में जगह मिली है सबसे युवा चेहरा है और वह पहली बार मंत्री बने हैं। मंत्रिमंडल में जो 3 पद खाली रखे गए है उनके बारे में सोच यह भी हो सकती है कि कम से कम पद खाली देखकर मंत्री पद की उम्मीद लगाए बैठे दर्जन भर से अधिक विधायक फिलहाल यह सोचकर खामोश तो रहेंगे कि उन्हें आने वाले समय में मंत्री बनाया जा सकता है। मंत्रिमंडल में हरिद्वार और नैनीताल जैसे जिलों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है वहीं पहाड़ के 5 जिलों से कोई भी मंत्री नहीं बनाया गया है। इस मंत्रिमंडल में गढ़वाल से पांच और कुमाऊं से तीन मंत्रियों को जगह दी गई है। खैर अब यह देखना है कि यह तीन खाली मंत्री पद कब भरे जाते हैं और आखरी साल तक भरे भी जाते हैं या नहीं। पिछली सरकार से शुरू हुई यह परंपरा भले ही गलत सही लेकिन इसके खिलाफ कोई आवाज उठाने वाला भी नहीं है। लेकिन जनहित में इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

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