सवाल बच्चों के भविष्य व सुरक्षा का

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यूं तो कोरोना ने विश्व भर के देशों की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को प्रभावित किया है किंतु भारत पर इसका प्रभाव कुछ ज्यादा ही रहा है। अधिक आबादी, दोयम दर्जे की स्वास्थ्य सेवाएं, गरीबी और बेरोजगारी जैसे कई कारण हैं जिसकी वजह से भारत को इसका बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। बीते डेढ़ साल से पूरे देश में स्कूल व कॉलेज बंद पड़े हैं। बच्चों को ऑनलाइन अपनी शिक्षा जारी रखने के प्रयास किया जाता रहा है। मगर स्कूल कॉलेज जाए बिना शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। 90 फीसदी बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई कर पाने के संसाधन तक पर्याप्त नहीं थे। दरअसल इस व्यवस्था के लिए कोई तैयारी नहीं थी यह एक मजबूरी में की गई कामचलाऊ व्यवस्था थी। अब जबकि दूसरी लहर जा चुकी है तथा स्थितियां सामान्यता की ओर बढ़ रही है तो अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षा क्षेत्र को भी पाबंदियों से बाहर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। कई राज्यों में स्कूलों व कालेजों को खोलने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। उत्तराखंड भी उन्हीं राज्यों में से एक है। यहां अभी सरकार ने 2 अगस्त से कक्षा 6 से 12 तक स्कूलों को खोलने का फैसला लिया था लेकिन अभिभावकों की आशंकाओं और भविष्य के संभावित खतरे के मद्देनजर अब इस फैसले में थोड़ा बदलाव करते हुए कक्षा 9 से 12वीं तक स्कूलों को 2 अगस्त से खोलने का निर्णय लिया गया है। असल में यह मामला इसलिए अधिक संवेदनशील है क्योंकि यह बच्चों के जीवन की सुरक्षा से जुड़ा है वही अभी देश में कोरोना की संभावित तीसरी लहर का खतरा भी बना हुआ है जिसमें बच्चों को अधिक संक्रमित होने की आशंकाएं जताई जा रही है। बच्चों के जीवन और भविष्य से जुड़े इस मुद्दे पर किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता है इसलिए फूंक—फूंक कर कदम रखा जाना जरूरी है। अभी बच्चों के लिए कोई वैक्सीन भी नहीं बन सकी है इसलिए भी बच्चों के जीवन पर बने खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बिना सुरक्षा के मजबूत इंतजामों के स्कूल कॉलेजों को तब तक नहीं खोला जाना चाहिए जब तक कोरोना की तीसरी लहर का खतरा बना हुआ है और अगर स्कूल कॉलेजों को खोलने की प्रक्रिया शुरू करनी है तो प्राइमरी और नर्सरी स्कूलों को सबसे बाद में खोला जाना चाहिए। इस काम में जल्दबाजी के नतीजे घातक हो सकते हैं। स्कूलों में सिनेटाइजिंग, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग की व्यवस्था को सख्ती से लागू किया जाना जरूरी है वहीं जितनी जरूरी संभव हो बच्चों के लिए वैक्सीन लाने के प्रयास जरूरी हैं।

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