आधी आबादी को राष्ट्रीय विकास में भागीदार बनाने की बातें तो सभी दल और सभी नेता करते रहे है लेकिन जब भी महिलाओं को आगे बढ़ाने या उन्हें बराबरी का अधिकारी देने की बात आती है तो उससे या तो कन्नी काट ली जाती है या फिर उनकी राह में रोड़े अटका दिये जाते है। राजनीति में महिलाओं को आरक्षण इसकी एक मिसाल है।
उत्तराखण्ड मेंं राज्य की महिलाओं को मिलने वाले 30 फीसदी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है उससे राज्य की महिलाएं खुश है। उनके आरक्षण पर नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा जो रोक लगायी गयी सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस पर स्टे लगा दिया गया हैै। उत्तराखण्ड की महिलाओं को राज्य की सरकारी नौकरियों मेंंंंंंंंंं मिलने वाला 30 फीसदी आरक्षण पूर्ववत जारी रहेगा। राज्य गठन के बाद 2001 में राज्य में नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व वाली पहली अंतरिम सरकार द्वारा महिलाओं को 20 फीसदी आरक्षण देने के अध्यादेश लाया गया था।
जिसे 2006 में सूबे की पहली निर्वाचित एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 20 से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया गया था। तब से लेकर 2021 तक यह व्यवस्था जारी रही लेकिन 2022 में यूपी व हरियाणा की महिलाओं ने नैनीताल हाईकोर्ट मेें इसके खिलाफ अपील दायर करने पर इस पर रोक लगा दी गयी। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ धामी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट मेंं एसपीएल दायर की गयी और सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगाते हुए दोनो पूर्व अध्यादेशों को लागू करने का फैसला सुना दिया। महिलाओं के इस आरक्षण की कानूनी लड़ाई के कारण राज्य में बीते समय में हुई भर्ती परीक्षाओं के परिणाम इसलिए रोकने पड़े क्योंकि आरक्षण पर स्थिति साफ नहीं थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगाये जाने से जहंा रूकी हुई परिक्षाओं के परिणाम आने का रास्ता साफ हो गया है वहीं नयी भर्तियों के लिए भी विज्ञप्तियंा जारी हो सकेगीं। ऐसा नहीं है कि उत्तराखण्ड कोई अकेला राज्य है जहंा महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। यह विडम्बना ही है कि देश में हर मुद्दा घूम फिर कर वोट की राजनीति पर ही आकर टिक जाता है।
मातृशक्ति या जिसे हम आधी आबादी कहते है किसी भी चुनाव में उनके वोट की क्या अहमियत है यह भी हम सभी जानते है। महिलाओं की नाराजगी मोल लेकर कोई भी दल सत्ता में आने की बात नहीं सोच सकता है। मसला कोई भी हो अगर महिलाओं के हितों से जुड़ा है तो उसका श्रेय लेने की होेड़ दलों के नेताओं में स्वाभाविक है। इस मुद्दे पर भी धामी सरकार और भाजपा के नेता इसे महिलाओं के हितों का सबसे बड़ा संरक्षण के रूप में स्वंय को पेश कर रहे है। भले ही सबसे पहले महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कांग्रेस और एनडी तिवारी ने की है। ख्ौर कुल मिलाकर यह महिला सशक्तिकरण के लिहाज से महिलाओं की बड़ी जीत है।