प्रचार कम, दुष्प्रचार ज्यादा

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चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा प्रचार कम एक दूसरे के खिलाफ दुष्प्रचार ज्यादा किया जाता है बीते कुछ दशकों में इस दुष्प्रचार की स्थिति उस हद को भी पार कर चुकी है जो मतदाताओं और आम आदमी को भ्रमित करने वाली होती है। कहा जाता है कि नेताओं और राजनीति का सच समझना मुश्किल ही नहीं असंभव होता है। उत्तराखंड की दो दशक की राजनीति पर अगर गौर करें तो आपको वह दौर भी याद होगा जब भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे के शासनकाल में होने वाले घपले—घोटालों की फेहरिस्त लेकर घूमते थे। मतदान केंद्रों तक जाने वाले रास्तों पर इन घोटालों पर सूचीबद्ध तरीके से छापे गए बड़े—बड़े पोस्टर, बैनर लगाए जाते थे। बीते कल प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी रैली में फिर कांग्रेस पर लूटपाट की राजनीति करने वाली पार्टी बताकर हमला बोला गया। उनका कहना था कि कांग्रेस के लोग उत्तराखंड को एटीएम और तिजोरी समझते हैं। अभी उन्होंने अपने राष्ट्रीय संबोधन में भ्रष्टाचार को दीमक बताकर इसे राष्ट्र की एक बड़ी समस्या बताया था। यह समझ से परे है कि देश के पीएम भ्रष्टाचार को लेकर इतने चिंतित हैं लेकिन सूबे के भाजपा नेता कहते हैं कि राज्य में जब भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है? हरिद्वार कुंभ के दौरान कोरोना जांच के नाम पर करोड़ों का घोटाला हो गया, लेकिन भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली सूबे की सरकार जिसने सत्ता में आने पर पहले 100 दिन के अंदर लोकायुक्त का गठन करने का वायदा अपने दृष्टि पत्र में किया था, जिसे वह अपने पूरे कार्यकाल में पूरा नहीं कर सकी। सवाल यह है कि राज्य से भ्रष्टाचार खत्म हो गया या राज्य में इतना भ्रष्टाचार है कि लोग लूट कर राज्य को खा रहे हैं। कौन सी बात सही है जनता किस पर भरोसा करें। बीते समय में देश के लोगों ने महंगाई की जो मार झेली है और झेल रहे हैं वह किसी कोरोना की महामारी से कम नहीं है। देश के लोगों ने इस दौर में 50 रूपये किलो आलू खाए और 100 रूपये किलो प्याज टमाटर भी खरीदे। पेट्रोल डीजल की कीमतें तथा रसोई गैस सिलेंडर के भाव तो रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच ही गए, खाघ तेलों की कीमतों ने भी आसमान छू लिया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि यह तो कुछ भी नहीं है 2014 से पहले तो देश में महंगाई की दर 70 प्रतिशत से अधिक थी। उनकी सरकार ने कोरोना की मार के बीच भी महंगाई को पूरी तरह काबू में रखा और देश में महंगाई की दर 5 फीसदी के आस पास की है जबकि अमेरिका जैसे देशों में महंगाई की दर 7 फीसदी से ऊपर है ऐसी स्थिति में आम आदमी कन्फ्यूज है कि आखिर सच क्या है? कांग्रेस भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बताकर विभाजन की राजनीति करने का आरोप लगाती है तो भाजपा कांग्रेस पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप मढ़ती है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच छिड़े चुनावी संग्राम में दोनों ही स्वयं को विकास का पुरोधा बता रहे हैं और दूसरों को विनाशकारी कह रहे हैं। चुनावी वायदों और शगुफों की तरह उनकी बातों की और घोषणा पत्रों की कोई विश्वसनीयता नहीं रही है। विश्वसनीयता के इस राजनीतिक दौर में अब मतदाताओं के लिए यह फैसला मुश्किल हो गया है वह किस पर भरोसा जताये।

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