असहनीय किराया वृद्धि

0
217

उत्तराखंड राज्य परिवहन प्राधिकरण द्वारा यात्री वाहनों के किराए में 15 से 27 फीसदी और माल भाड़े में 35 से 40 फीसदी की वृद्धि कर दी गई है। यह अलग बात है कि यह किराया वृद्धि 3 साल बाद की गई है इससे पूर्व फरवरी 2020 में किराया वृद्धि की गई थी। यह भी सच है कि इस दौरान पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 40 से 45 फीसदी वृद्धि हो चुकी है जिसके कारण उत्तराखंड राज्य परिवहन निगम भारी घाटे में चल रहा है उसे इस किराया वृद्धि से भारी राहत मिलेगी लेकिन सवाल यह है कि क्या इन 3 सालों में आम आदमी की आमदनी में इसी अनुपात में वृद्धि हुई है। किराया भाड़ा वृद्धी की मार जिस आम आदमी पर पड़ेगी उसकी आय बढ़ाने की बात तो छोड़िए समग्र महंगाई की मार झेल रहा आम आदमी पहले से ही इतनी मुश्किलें झेल रहा है कि यह किराया वृद्धि उसकी कमर तोड़ने जैसा ही है। आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में हुई भारी वृद्धि और रसोई गैस सिलेंडर से लेकर पेट्रोल—डीजल की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी का बजट बिगाड़ दिया है। अब उसके ऊपर से उस पर महंगाई की एक और बड़ी चोट इस किराया वृद्धि के रूप में की गई है। असल में यह एक असंतुलित विकास की मिसाल है। सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल उस आम आदमी द्वारा किया जाता है जिसे हम निम्न आय वर्ग या निम्न मध्यम आय वर्ग में शुमार करते हैं। जो वर्तमान महंगाई के दौर में सबसे ज्यादा परेशान है। जो महंगाई के कारण और अधिक गरीब होता जा रहा है। जिस तबके को सरकार मुफ्त राशन और सब्सिडी देकर जिंदा रखे हुए हैं। बात हम अगर कोरोना काल की करें तो इस दौरान करोड़ों परिवार जो गरीबी की रेखा से ऊपर आने वाले थे वह फिर गरीबी की गहरी खाई में धकेले जा चुके हैं। जितने लोगों का रोजगार कोरोना काल में गया उतने लोगों को बीते 5 साल में भी रोजगार नहीं मिल सका। सत्ता में बैठे लोग भले ही समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति के भी उत्थान की बात करते रहे हो और उन्हें अच्छे दिन लाने का सपना दिखाते रहे हो लेकिन उनके कितने अच्छे दिन आज सके हैं इसका सच सिर्फ वही जानते हैं। इस किराया वृद्धि से परिवहन निगम को राहत मिल सकती है। ट्रांसपोर्ट कारोबारियों को राहत मिल सकती है टैक्सी, टेंपो व विक्रम तथा ऑटो रिक्शा चालकों को राहत मिल सकती है लेकिन आम आदमी पर यह महंगाई की बड़ी चोट है। क्योंकि यह बढ़ोतरी अत्यधिक बढ़ोतरी है। और आम आदमी के लिए असहनीय बढ़ोतरी है। अच्छा होता कि परिवहन प्राधिकरण थोड़ा हल्का हाथ रखता। दरअसल आम आदमी के पास विरोध की भी क्षमता नहीं है। हर एक उस बोझ को जो उसकी जेब पर डाला जाता है, सहना उसकी एक बड़ी मजबूरी ही होता है। लेकिन अति का अंत भी ठीक नहीं होता जिस का एक उदाहरण श्रीलंका है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here