अंतर्कलह से बाज आएं कांग्रेसी

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लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस ने नेता विपक्ष तथा उपनेता विपक्ष और नए प्रदेश अध्यक्ष के नामों की एक साथ घोषणा कर दी। कांग्रेस हाईकमान द्वारा यशपाल आर्य को नेता विपक्ष और युवा चेहरा भुवनचंद कापड़ी को उपनेता बनाया गया है वही प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी रानीखेत से चुनाव हारने वाले दो बार के अपने विधायक करण माहरा को सौंपी गई है। जिन नामों की घोषणा हुई है वह भले ही किसी को भी कुछ अप्रत्याशित लग रहे हो लेकिन हाईकमान किसी भी नेता का नाम इन पदों पर तय करते उसे लेकर कुछ न कुछ कहा जाना सुनिश्चित था। क्योंकि कांग्रेस के अंदर जिस तरह की आंतरिक गुटबाजी हावी है उसे देखते हुए सर्वसम्मति से कुछ भी होना संभव नहीं है। जिन्हे विरोध करना है या नुक्ताचीनी करनी है उन्हें रोका नहीं जा सकता है। अब इस फैसले पर भी यह कहकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि इसमें क्षेत्रीय संतुलन का ध्यान नहीं रखा गया है। कुमाऊं मंडल को ही सभी तीनों महत्वपूर्ण पद देकर गढ़वाल की उपेक्षा की गई है। कुछ लोग जो यह सोचे बैठे थे कि नेता विपक्ष तो प्रीतम सिंह को ही बनाया जाएगा वह इस चयन को प्रीतम गुट को झटका बता रहे हैं। वहीं कुछ लोग इसे हरीश रावत और प्रीतम दोनों ही गुटों को दरकिनार कर दिए जाने के रूप में देख रहे हैं। लेकिन एक बात इस फैसले से साफ जरूर हो गई है कि कांग्रेस हाईकमान को तानाशाही किसी भी नेता की स्वीकार्य नहीं है, एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी अब युवा नेतृत्व को आगे आने का मौका देने की रणनीति पर आगे बढ़ना चाहती है। यशपाल आर्य भले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे लेकिन कांग्रेसी उन्हें भावी सीएम (दलित सीएम) की बात कहकर वापस लाई थी वह एक दलित चेहरे के रूप में बड़े नेता हैं अगर उन्हें नेता विपक्ष बनाया गया है तो यह सम्मान उन्हें मिलना ही चाहिए था। वही भुवनचंद कापड़ी जिन्होंने धामी जैसे दिग्गज को मात दी उन्हें भी अगर अब आगे बढ़ने का मौका नहीं देंगे तो किसे देंगे? जब भाजपा अपने हारे हुए प्रत्याशी को मुख्यमंत्री बना सकती है तो करण माहरा जो एक विश्वसनीय और युवा चेहरा है उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा देती है तो इसमें कांग्रेस के बड़े नेताओं को परेशानी क्यों होनी चाहिए, यह समझ से परे है। हाईकमान का यह फैसला एक दूरगामी और दूरदर्शिता पूर्ण फैसला है। जो नेता स्वयं को इससे उपेक्षित महसूस कर रहे हैं अब पार्टी को चाहिए कि वह उन्हें केंद्रीय राजनीति में इससे भी बड़ा पद देकर उन्हें सम्मानित करें तथा इन बड़े नेताओं को चाहिए कि वह हाय—हल्ला के बजाय धैर्य से हाईकमान के अगले फैसले का इंतजार करें लेकिन कांग्रेसी नेताओं की मुश्किल यही है कि वह तत्काल क्रिया—प्रतिक्रिया देकर अपनी और पार्टी की मुसीबतें बढ़ाने से बाज नहीं आते हैं। जिसका परिणाम वह खुद भी भोग रहे हैं तथा पार्टी तो भोग ही रही है।

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