करो योग, रहो निरोग

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`पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख संतान हो आज्ञाकारी, चौथा सुख सुलक्षणा नारी,। सनातन धर्म में जिन चार सुख की बात कहीं जाती है उनमें सर्वाेच्च प्राथमिकता स्वस्थ शरीर को ही दी गई है। वैसे भी अंग्रेजी में कहा जाता है कि ट्टहेल्थ इज वेल्थ’ यानी स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। खास बात यह है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ विचारों का वास होता है जो हमारे चारित्रिक और नैतिक जीवन मूल्यों के निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए हर व्यक्ति के लिए यह सवाल अहम होता है कि वह कैसे स्वस्थ रहें? स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए शुद्ध हवा और शुद्ध खानपान तो जरूर है ही साथ ही योग और व्यायाम भी उतना ही जरूरी है। योग और व्यायाम किसी भी आदमी के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है। भारतीय संतों, ऋषि—मुनियों तथा मनीषियों ने आध्यात्मिक और योग के जरिए स्वस्थ रहने की एक अद्भुत खोज की। योग ध्यान और आयुर्वेद आदिकाल से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। जिनमें सिर्फ स्वास्थ्य और आध्यात्म के रहस्य ही नहीं छिपे हैं बल्कि जीवन की तमाम सफलता और असफलतांए इन्हीं के इर्द—गिर्द घूमती है। भारत योग का जनक माना जाता है। लेकिन इस चमत्कारी विघा के समय के साथ लोप हो जाने से लोग इसके लाभ से बाधित होते चले गए। भारत के योगियों ने बीते कुछ दशकों में एक बार फिर योग की तरफ देश और दुनिया का ध्यान खींचा। भारत ही नहीं विश्व भर के लोग जो शारीरिक व्याधियों और मानसिक अशांति से जूझ रहे थे उन्हें यह समझाने का प्रयास किया कि सिर्फ योग और ध्यान ही उनकी बीमारी की अचूक दवा है अच्छी बात यह है कि यह बात लोगों के जल्दी ही समझ भी आ गई और आज विश्व भर के देशों में लोग योग को अपनी जीवनश्ौली का हिस्सा बना चुके हैं। आज भारत सहित तमाम देशों में योग दिवस मनाया जा रहा है। अभी योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ है आज विश्व आठवां अंतरराष्ट्रीय विश्व योग दिवस मना रहा है। लेकिन इतने कम समय में लोगों ने योग की महत्ता को कितना अधिक जान समझ लिया यह देश और दुनिया भर में होने वाले योग आयोजनों से समझा जा सकता है। योग वास्तव में स्वस्थ जीवन का एक ऐसा सबसे सस्ता और आसान जरिया है जो सिर्फ हर दिन 30 से 40 मिनट का समय अपने आप को देकर कोई भी हासिल कर सकता है। किंतु अभी भी एक बड़ी आबादी है जिसके पास फालतू के कामों के लिए समय की कोई कमी नहीं है लेकिन वह योग और ध्यान के लिए आधा घंटा या 45 मिनट का समय नहीं दे रहे हैं। कई बार यह भी होता है कि जब हमें कोई चीज बिना कुछ खास प्रयास के आसानी से मिल जाती है तो उसकी कोई अहमियत हम नहीं समझ पाते हैं योग के साथ भी कुछ वैसा ही है। जरूरत है कि योग के महत्व को समझने और उसे अपनी जीवनश्ौली का हिस्सा बनाने की, तभी इसका समाज को पूरा लाभ मिल पाएगा।

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