कांग्रेस ने गंवाया मौका

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उत्तराखंड कांग्रेस के लिए वर्तमान लोकसभा चुनाव भले ही करो या मरो वाली स्थिति का चुनाव है लेकिन क्या कांग्रेस के सूबाई नेता इस चुनाव को लेकर इतने गंभीर दिख रहे हैं जितना गंभीर उन्हें होने की जरूरत थी। पिछले दो चुनावों में बुरी तरह हार चुकी कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव से पहले ही जिस तरह से हथियार डाल दिए और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा चुनाव न लड़ने की मन इच्छा जताना शुरू कर दिया गया निश्चित तौर पर वह कांग्रेस नेताओं की कमजोर इच्छा शक्ति और टूटे मनोबल का ही प्रतीक माना जा सकता है। सूबे के वरिष्ठ वह तमाम कांग्रेस नेता जो किसी भी उपलब्धि का श्रेय लेने के लिए सबसे आगे की लाइन में खड़े दिखाई देते हैं उन नेताओं ने अगर खुद आगे बढ़कर चुनाव लड़ने का साहस दिखाया होता तो उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ता लेकिन ऐसा कहीं भी देखने को नहीं मिला। कई कांग्रेसी नेता तो यह कहकर चुनाव मैदान में उतरने से कतराते दिखे कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं है। कई नेता जो चुनाव लड़ना भी चाहते थे उन्हें उनकी पसंद की सीट पर चुनाव नहीं लड़ने दिया गया। अगर कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची पर गौर किया जाए तो उसने पांच में से दो सीटों पर सिर्फ काम चलाऊ प्रत्याशी ही चुनाव मैदान में उतारे हैं। प्रदीप टम्टा जो दो बार अल्मोड़ा सीट पर भाजपा के इसी प्रत्याशी से चुनाव हार चुके हैं जो वर्तमान में उनके मुकाबले मैदान में है अगर कांग्रेस के पास कोई और दमदार प्रत्याशी होता तो शायद कांग्रेस उन्हें टिकट नहीं देती। यशपाल आर्य नैनीताल सीट से चुनाव लड़ सकते थे लेकिन पार्टी के सूबाई नेता उन्हें नैनीताल की बजाय अल्मोड़ा से चुनाव लड़ाने पर अड़े थे ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने पैर पीछे खींच लिए और पार्टी ने एक ऐसे चेहरे प्रकाश जोशी को चुनाव मैदान में उतारा है जो भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले कहीं भी टिकता नहीं दिख रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भले ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करने के लिए कांग्रेस हाई कमान को अपनी बात मनवाने में सफल हो गए और अपने पुत्र वीरेंद्र रावत को टिकट दिला पाये हो लेकिन जब वह खुद चुनाव नहीं जीत सके तो अपने बेटे को चुनाव कैसे जिता सकेंगे यह आने वाला समय ही बतायेगा जबकि इस सीट पर बसपा ने अब अपना प्रत्याशी बदलकर जमीन अहमद को मैदान में उतार कर सारे समीकरण ही बदल दिए हैं। कांग्रेस के पास इस चुनाव में एक अच्छा मौका था जब अपने जिताऊ उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर दो बार की हार की हताशा से उबर सकती थी लेकिन कमजोर प्रत्याशी उतार कर उसने इस मौके को गंवा दिया है। एक समय था जब एक चुनाव में कांग्रेस सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज करती थी और दूसरे चुनाव में भाजपा सभी सीटों पर जीत जाती थी लेकिन बीते दो चुनावों में भाजपा ने इस मिथक को तोड़ डाला और अब वह जीत की हैट्रिक का दावा ही नहीं कर रही है अपितु उसका लक्ष्य है कि जीत का अंतर रिकॉर्ड स्तर तक ले जाना है ऐसी स्थिति में कमजोर प्रत्याशी और टूटे मनोबल वाली कांग्रेस के हाथ अगर कुछ लग भी जाता है तो यह उसका नहीं बीजेपी की भीतरघात का ही करिश्मा हो सकता है। जिसके लिए भाजपा जानी जाती है। बिसात बिछ चुकी है अब 19 अप्रैल मतदान का इंतजार है और फिर चुनाव परिणाम की तारीख का जब सब कुछ साफ हो जाएगा।

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