भारी पड़ता किसान आंदोलन

0
128


एक बार फिर देश के किसान अपनी पुरानी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। सरकार किसी भी कीमत पर उन्हें दिल्ली तक न पहुंचने देने की जिद पर अड़ी है तो किसान भी अब सरकार से आर या पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। सत्ता में बैठे लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि लठ्ठ तंत्र और लोकतंत्र में क्या अंतर है। आप अगर सत्ता की लाठी से लोकतंत्र को हांकना चाहते हैं तो यह न कभी संभव हुआ है और न ही होगा। जहां तक किसानों की मांगों की बात है तो उन्हें न सत्ता में बैठे लोगों के तर्कों से अनुचित ठहराया जा सकता है और न देश के बुद्धिजीवियों और समाजशास्त्रियों द्वारा गलत बताया जा सकता है। फिर सरकार को क्यों उनकी मांगों को मानने में आपत्ति है? यह सवाल इसलिए भी बड़ा सवाल है क्योंकि इसके पीछे का सच भी उसे कॉर्पाेरेट के हितों से ही जुड़ा हुआ है जिन्होंने सरकार को इलेक्ट्रोरल बांड से मालामाल किया है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि किसानों का यह आंदोलन भाजपा सरकार के ताबूत में अंतिम कील का काम करेगा। वह साफ—साफ कहते हैं कि अडानी जिन्होंने किसानों के गेहूं चावल और दालों के भंडारण के लिए इतने बड़े—बड़े गोदाम बना रखे हैं उनके आर्थिक हितों के संरक्षण के कारण किसानों की मांगों को सरकार नहीं मान सकती है। लेकिन सरकार सड़कों पर कीलें गाढ़ और कटीली तार—बाड़ कर जिस तरह से किसानों को भेड़ बकरियों की तरह दौड़ा रही है और उन पर अश्रु गैस के गोले बरसा रही है उसे नहीं पता है कि इसका परिणाम क्या होगा? उनका तो यहां तक कहना है कि जिस तरह से अभी सहारनपुर में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को लोगों ने दौड़ाया था वैसे ही आने वाले समय में गांव—देहात के लोग इन बीजेपी नेताओं को दौड़ाते दिखेंगे। अभी—अभी स्वामीनाथन की बेटी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि किसान कोई क्रिमिनल नहीं है और वह न ही कोई आतंकी है कि उन पर लाठी डंडे बरसाये जाएं या उन पर गैस के गोले दागे जायें सरकार को उनकी बात सुननी चाहिए। एक तरफ सरकार स्वामीनाथन की सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करती है तो दूसरी ओर वह स्वामी नाथन की रिपोर्ट को लागू करने की मांग पर किसानों को भेड़ बकरी की तरह लाठी डंडे बरसाकर दौड़ाती दिख रही है। सरकार ने अभी—अभी किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भी भारत रत्न देने की घोषणा की है उससे उपकृत होकर उनके नाती जयंत चौधरी भाजपा के गठबंधन में शामिल हो गए हैं। हरियाणा की खाप पंचायत और पंजाब के किसान व यूपी के किसानों द्वारा किसानों के आंदोलन पर जयंत चौधरी को जो खरी—खरी सुनाई जा रही है वह तो अलग, उनके राजनीतिक बहिष्कार तक की चेतावनी दे डाली है। सच यह है कि क्या वास्तव में 2024 के चुनाव में यह किसान आंदोलन कोई अहम और निर्णायक भूमिका निभाने जा रहा है अगर इसका सही जवाब ढूंढा जाए तो इसमें कोई शक नहीं है यूपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तराखंड में इस आंदोलन का प्रभाव कम से कम 125 से 130 सीटों पर पड़ेगा। जो भाजपा के सारे समीकरणों को बिगाड़ सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here