राम मंदिर अभी भी राजनीतिक मुद्दा

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भले ही धर्म और आस्था तथा राजनीति को अलग—अलग विषय और मुद्दे होने की बात की जाती रही हो लेकिन सच्चाई इसके एकदम अलग है। इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं रखा जा सकता है। देश का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है। बीते 5 दशकों में देश में होने वाला कोई एक चुनाव ऐसा नहीं रहा है जिस पर धर्म और आस्था को मुद्दा न बनाया गया हो। बात चाहे अयोध्या, काशी और मथुरा की हो या फिर पंजाब के खालिस्तान की। आतंकवादी मुहिम जिसकी तपिश आस्था के आयाम स्वर्ण मंदिर तक पहुंची। किसी न किसी रूप और संदर्भ में धर्म और आस्था को हमने राजनीति से जुड़ते हुए देखा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का काम अब पूरा हो चुका है। यह अत्यंत ही सुखद स्थिति है कि इस अत्यंत ही कठिन और जटिल मुद्दे का समाधान दोनों ही पक्षों की सहमति और न्यायालय के सर्वमान्य फैसले से हो सका लेकिन राम मंदिर आंदोलन का इतिहास जिस रक्त रंजित दौर से गुजर कर इस मुकाम तक पहुंचा है और इस मुद्दे के इर्द—गिर्द जिस तरह से देश की राजनीति घूमती रही है वह भी किसी से छिपा नहीं है। 2024 के चुनाव में एक बार फिर यह मुद्दा चुनावी चर्चा के केंद्र में आ गया है। 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे पूर्व अपने अयोध्या दौरे में नवनिर्मित हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन का लोकार्पण कर यहां से चलने वाली कई ट्रेनों को हरी झंडी दिखा चुके हैं। अपने इस दौरे पर उन्होंने देशवासियों से सभी देवालयों में पूजा अर्चना करने और दीपावली जैसा उत्सव मनाने को कहा है। कहने का आशय है कि इस दिन को एक बार फिर दीपावली महोत्सव मनाने की तैयारी की जा रही है। देश भर में भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता इसकी तैयारी में जुट गए हैं। घर—घर पांच—पांच दिए वितरित किए जा रहे हैं अयोध्या में इस दौरान क्षमता से भी अधिक भीड़ जुटने की संभावना है। जिसे लेकर सुरक्षा की तैयारी भी अभी से जारी हैं देश के कोने—कोने से लोग अयोध्या आएंगे और जो अयोध्या नहीं जा सकेंगे वह अपने गांव कस्बे और शहर में ही दीपावली मनाएंगे। देवालयों में विशेष पूजा अर्चना के साथ हनुमान चालीसा और अखंड रामायण अथवा सुंदरकांड का पाठ भी किया जाएगा। मुद्दा हिंदुत्व से और धर्म तथा आस्था से जुड़ा हुआ है इसलिए इसका कोई विरोध नहीं कर सकता। हिंदुत्व, हिंदू व हिंदी और मंदिर की बात अगर हिंदुस्तान में नहीं होगी तो फिर और क्या पाकिस्तान में होगी। जो कुछ भी हो रहा है वह बिल्कुल ठीक है और होना भी चाहिए। लेकिन कांग्रेस सहित अन्य तमाम दलों द्वारा सवाल भी उठाये जा रहे हैं क्योंकि यह सब कुछ लोकसभा चुनाव से पूर्व हो रहा है। कांग्रेस इसका यह कहकर विरोध कर रही है कि भाजपा इसका चुनावी लाभ लेने के लिए आधे अधूरे मंदिर निर्माण कार्य के बीच ही प्राण प्रतिष्ठा का जो कार्यक्रम आयोजित कर रही है वह गलत है। वहीं भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का जितना भी जिस माध्यम से भी प्रचार कर सकती है उसमें पूरी ताकत के साथ लगी हुई है। भाजपा के लिए अयोध्या का राम मंदिर निर्माण का यह मुद्दा हमेशा ही बड़ा मुद्दा रहा है इसी मुद्दे पर भाजपा का राजनीतिक भविष्य का सफर आगे और आगे बढ़ता रहा है। अब यह मुद्दा अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। जहां तक इस पर राजनीति की बात है वह अभी भी जारी है और शायद आगे भी जारी रहेगी। अभी 2 दिन पूर्व सीएम धामी ने अपने बयान में कहा था कि अगर सपा की यूपी में सरकार रही होती तो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कभी नहीं हो सकता था। इसी तरह के तमाम राजनीतिक बयान अभी भी लगातार जारी हैं जो यह बताने के लिए काफी है कि अयोध्या में बनाए गए राम मंदिर निर्माण का यह मुद्दा आने वाले लोकसभा चुनाव में भी एक अहम मुद्दा रहने वाला है इससे साथ ही अब काशी और मथुरा की बारी है वाले नारों की गूंज भी इस चुनाव में सुनाई देगी।

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