विवाद और विद्वेश की राजनीति

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जुमले हैं, नारे है और विवाद और विद्वेश तो बहुत सारे हैं जो प्रधानमंत्री और भाजपा के लिए राजनीति के अहम सहारे है। अभी हाल में ही तमिलनाडु के युवा मंत्री उदय स्टालिन ने सनातन और सनातनियों के खिलाफ ऐसी आपत्तिजनक टीका टिप्पणी कर दी की उत्तर भारत अपमान की आग से सुलग उठा। भाजपा के मीडिया सेल ने भी उसे लपकने में कोई देर नहीं की। देश का वह मीडिया भी जो अब मीडिया कम और पक्षकार ज्यादा हो गया है, ने इसे तूल देने में कोई कोर कसर नहीं रखी। क्योंकि राजनेताओं की तरह ही कुछ टीवी पत्रकारों को देश और समाज के हितों से कोई सरोकार नहीं रह गया है और उन्हें भी सिर्फ अपनी टीआरपी तथा कमाई के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता है भले ही उनकी इस चरित्रगत गिरावट के कारण बहिष्कृत किए जाने की नौबत आ गई हो लेकिन वह सोचने को तैयार नहीं है इस स्थिति के लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं। अभी आम चुनाव से पूर्व जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं भाजपा ने उन राज्यों में प्रचार अभियान शुरू कर दिया है जिसमें प्रधानमंत्री ने एमपी और छत्तीसगढ़ की सभा में इंडिया गठबंधन पर सनातन को समाप्त करने का आरोप लगाते हुए जबर्दस्त हमला बोला। बस फिर क्या था भाजपा के छोटे से लेकर बड़े तक सभी नेताओं ने सनातन को समाप्त करने की कोशिश करने वाले खुद समाप्त हो जाएंगे जैसे व्याख्यान देने शुरू कर दिए। स्थिति अभी से यह पैदा हो गई है कि सनातन भाजपा के लिए एक अहम चुनावी मुद्दा बन चुका है। भाजपा और एनडीए के नेता अच्छी तरह से जानते हैं कि देश के हिंदू धर्मावलंबी अपनी सनातनी धार्मिक पहचान को सबसे अधिक महत्व देंगे। और दलित तथा पिछड़ों की राजनीति करने वालों पर वह मुद्दा बहुत भारी पड़ेगा। यही कारण है कि इंडिया गठबंधन के नेताओं के पास अब इसका कोई जवाब नहीं बनता दिख रहा है। भाजपा का प्रयास था कि वह 2024 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के रूप में एक धार्मिक मुद्दे के तौर पर पेश करेगी मगर अब उसे सनातन एक मजबूत धार्मिक मुद्दे के रूप में मिल चुका है। संघ के कार्यकर्ताओं से लेकर देश के साधु संतों सभी के समर्थन ने इसे और अधिक मजबूत धार्मिक मुद्दा बना दिया है। धर्म की राजनीतिक ध्वजा का अब सनातन का मुद्दा काफी होगा व समाज के राजनीतिक शास्त्र को साधने के लिए उसके पास यूनिफॉर्म सिविल कोड व एक देश एक चुनाव जैसे मुद्दों के साथ—साथ वह तमाम समाज कल्याण की योजनाएं हैं। जिनके जरिए वह लंबे समय से मुफ्त की रेवड़ियंा बांटने का काम कर रहे हैं। सत्ता में बैठे लोग लंबे समय से देश में एक साथ चुनाव और समान नागरिक संहिता के फायदे लोगों को समझाने में लगे हुए हैं। यह अलग बात है कि इन तमाम मुद्दों से न आम आदमी को रोजी—रोटी मिल सकती है और न राष्ट्रीय विकास से इन मुद्दों का कुछ लेना देना है लेकिन समाज में विद्वेश और विवादों को बढ़ावा देने वाले इन मुद्दों से चुनाव जरूर जीता जा सकता है। जो आज के दौर में राजनीति का एक मात्र उद्देश्य बन चुका है। भले ही भावी भविष्य की पीढ़ियाें को इसकी कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।

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