आंदोलनकारियो को आरक्षण

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उत्तराखंड की धामी सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी जरूर दे दी गई है और यह उम्मीद भी की जा सकती है कि उनका यह प्रयास सफल भी हो जाए लेकिन 2004 यानी राज्य गठन के बाद से जिस मुद्दे को लेकर राजनीति हावी है उसकी मंजिल तक पहुंचना बहुत आसान नहीं है भले ही वर्तमान में पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार हो या फिर विपक्ष जो कभी इसके विरोध में नहीं रहा उसका भी समर्थन इस मुद्दे पर सरकार के साथ रहा हो। 2004 में सबसे पहले यह आरक्षण व्यवस्था एनडी तिवारी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में लागू की थी तब 7 दिन या इससे अधिक समय जेल में रहने वाले आंदोलनकारी या घायल हुए लोगों तथा उनके आश्रितों को समूह ग के पदों पर सीधी भर्ती का प्रावधान किया गया था लेकिन 26 अगस्त 2013 में हाई कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगा दी गई। 2018 में आरक्षण से संबंधित जीओ और नोटिफिकेशन को भी खारिज कर दिया गया था। 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार द्वारा एक बार फिर इस विधेयक को पारित कराकर राज भवन की मंजूरी के लिए भेजा गया जिसे अब तक लंबित रखा हुआ था अब एक बार फिर धामी सरकार ने इसे राजभवन से वापस मंगा कर मामूली संशोधन के साथ कैबिनेट में मंजूरी दे दी गई है। सरकार का कहना है कि वह इस मानसून सत्र जो 5 सितंबर से शुरू हो रहा है, में पेश किया जाएगा। विधानसभा से इस विधेयक को पारित होने तक इसमें कहीं कोई अड़चन नहीं है लेकिन इससे आगे की प्रक्रिया में वह तमाम कारण अभी भी मौजूद है जिनकी वजह से यह 2004 से लेकर अभी तक अधर में लटका हुआ है। यह सबसे अधिक हास्यास्पद बात है कि राज्य गठन के 20 साल बाद भी आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण का काम पूरा नहीं हो सका है। इसकी मुख्य वजह यह रही है कि अधिकांश आंदोलनकारियों के अपने पास इसके साक्ष्य का अभाव रहा है वहीं राज्य गठन के बाद खुद को आंदोलनकारी सिद्ध करने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। सरकारों के सामने यह संकट रहा है कि स्पष्ट मानक तय न होने के कारण नाखून कटा कर शाहिदों की सूची में नाम लिखवाने वाले लोगों ने इसे और भी अधिक जटिल बना दिया गया। हालात ऐसे पैदा हो गये कि पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक जैसे लोगों के नाम राज्य आंदोलनकारियों की सूची में शामिल कर लिए गए जिनकी इस आंदोलन में रत्ती भर भी सहभागिता नहीं रही है जब इसे लेकर लोगों ने आपत्ति जाहिर की तो डा. निशंक को इस सूची से अपना नाम कटवाने पर बाध्य होना पड़ा। आज भी कई ऐसे आंदोलनकारी है जो आंदोलन में सक्रिय रहे मगर उनके नाम उसे सूची में शामिल नहीं है। अब देखना यह है कि अगर इन राज्य आंदोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण का कानून धामी सरकार द्वारा लाया जाता है तो उसके लिए क्या मापदंड तय किए जाते हैं। सरकार ने यह तो साफ कर दिया है कि इसका लाभ 2004 से लागू किया जाएगा राज्य में आंदोलनकारी की सूची इतनी लंबी हो चुकी है कि इसमें 12 हजार लोगों के नाम दर्ज है अब इनमें से सरकारी नौकरी के पात्र कितने लोग होते हैं यह समय बताएगा।

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