नए भारत की यह कैसी नई राजनीति

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कल महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में घटित राजनीतिक घटनाक्रम पर शायद किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह नए दौर का नया भारत है और नए दौर के इस नए भारत की राजनीति का यह नया चेहरा है, जो केंद्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा की देन है। वर्तमान दौर की राजनीति को समझने के लिए किसी किताब को पढ़ने की जरूरत नहीं है सिर्फ महाराष्ट्र विधानसभा के कार्यकाल के 4 सालों में घटित होने वाली घटनाओं की जानकारी ही काफी है। भाजपा का शिवसेना से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा का सत्ता में आने का सपना क्या टूटा महाराष्ट्र की राजनीति और राजनीतिक दलों पर मानो कहर ही टूट पड़ा। गैर संवैधानिक तरीके से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने से लेकर रात के अंधेरे में देवेंद्र फर्नांडिस के नेतृत्व में नई सरकार के शपथ ग्रहण से लेकर महज 80 घंटे के अंदर इस सरकार का पतन होने जैसी घटनाओं के बाद भी महाराष्ट्र का सियासी संक्रमण नहीं थमा। एनसीपी के सहयोग से महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हुई शिवसेना और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भले ही भाजपा के पहले वार को नाकाम करने में सफल रहे और 28 नवंबर 2019 में दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच गए लेकिन 2022 में शिवसेना के ही एकनाथ शिंदे ने उन्हें ऐसी पटखनी दी, न सिर्फ उनको सत्ता से बाहर होना पड़ा बल्कि पार्टी के चुनाव चिन्ह तक से भी हाथ धोना पड़ा और वह अभी तक असली नकली शिवसेना की न्यायिक लड़ाई लड़ रहे हैं। शिवसेना के दो फाड़ होने के बाद अब राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार की एनसीपी में भी बीते कल विभाजन हो चुका है। उनके भतीजे अजीत पवार अपने समर्थक विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो चुके हैं सरकार में अब वह एक बार फिर उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो चुके हैं तथा उनके साथ गए विधायकों में 8 को मंत्री बनाया जा चुका है। सत्ता की अवसरवादी का की इंतहा यह है कि अजित पवार देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में भी उप मुख्यमंत्री थे और अब शिंदे सरकार में भी उपमुख्यमंत्री बन गए यही नहीं देश की राजनीति में 5 बार उप मुख्यमंत्री बनने वाले अजीत पवार पहले नेता है। कल एनसीपी में जो बड़ा विभाजन हुआ है उससे पूर्व मुख्यमंत्री शिंदे व देवेंद्र फडणवीस कि केंद्रीय गृह मंत्री के साथ कई घंटे लंबी वार्ता दिल्ली में हुई और शाह की मंजूरी के बाद ही राज भवन में यह शपथ ग्रहण हुआ। पहले शिवसेना और अब एनसीपी में बड़े विभाजन के बाद महाराष्ट्र के राजनीतिक भविष्य पर कुछ कहने के लिए शेष नहीं बचा है भले ही शिवसेना और एनसीपी का जो हश्र हुआ है उनकी मुख्य वजह इन राजनीतिक दलों के नेताओं की महत्वाकांशाओं के कारण हुआ हो लेकिन उनका यह हाल किया किसने और क्यों किया यह किसी से भी छिपा नहीं है एक साल बाद होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अब इनकी क्या गति होने वाली है यह भी साफ दिखाई दे रहा है। नए दौर के इस नए भारत में भाजपा और उसके नेताओं की यह नई राजनीति देश को कहां लेकर जा रही है इसकी तस्वीर 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद ही पता चलेगी लेकिन एक के बाद एक राज्य में जिस तरह सत्ता के चीरहरण और राजनीतिक दलों के श्ररण की जो घटनाएं सामने आ रही हैं वह देश के लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। सिर्फ सत्ता के लिए राजनीति व नेताओं का समर्पण अत्यंत ही चिंताजनक है।

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