नफरत और घृणा की राजनीति

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बीते कुछ दिनों से देश के कोने कोने से लव जिहाद, लैंड जिहाद और धर्मांतरण की मुद्दों से जुड़ी खबरों की एक बाढ़ सी आई हुई है। एक के बाद एक ही तरह की इन खबरों के पीछे का सच क्या है? इसे समझ पाना आम आदमी के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है हां एक बात जरूर है देश के तमाम लोग महसूस कर रहे हैं कि इस तरह की खबरों से सामाजिक सौहार्द समाप्त हो रहा है और सामाजिक विभाजन की रेखा और गहरी होती जा रही है। सांप्रदायिकता की चिंगारियां भड़क रही है और नफरत का जहर फिजाओं में फैल रहा है बात चाहे उत्तराखंड के पुरोला की हो जहां लव जिहाद के एक मामले को लेकर उत्तरकाशी जनपद से मुसलमानों के पलायन की खबरें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं के केंद्र में हैं या फिर यूपी के जालौन की जहां अमजद नाम के एक मुस्लिम युवक द्वारा उमेश दुबे को कार से धक्का देकर उसे कुचल डाला गया। बताया जा रहा है कि यह घटना मोदी और योगी का गुणगान किए जाने के कारण हुई, जो अमजद को गवारा नहीं था। इस मामले में हालांकि पुलिस को अमजद ने झगड़े का कारण कुछ और बताया है। मध्य प्रदेश की राजधानी से आई एक खबर के अनुसार यहां एक हिंदू युवक विजय को कुछ मुस्लिम युवकों द्वारा पकड़कर उसकी गर्दन में पटृा बांधकर उसके साथ मारपीट और धर्मांतरण के लिए दबाव डालने का प्रयास किया गया। उसे कुत्ते की तरह भौंकने को कहा गया और इतना पीटा गया कि उसकी हालत गंभीर बनी हुई है। भोपाल से आई खबर पर सीएम शिवराज सिंह ने संज्ञान लिया तो इन सबकी गिरफ्तारी की गई है तथा उन पर रासुका के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। यह घटनाएं एक उदाहरण भर है। अभी बीते दिनों कुछ गौ तस्करों को जिंदा जला देने की घटना से लेकर सर तन से जुदा करने के नारे लगाने वालों ने देश में कई ऐसी वीभत्स घटनाओं को अंजाम दिया है जिन्हें देखकर किसी की भी रूह कांप उठे बीते कुछ समय से इस तरह की घटनाओं का एक सिलसिला अविराम जारी है। घटनाओं के बारे में यह भी चर्चा आम है कि यह देश भर में किये जाने वाला सुनियोजित षड्यंत्र है। इस षड्यंत्र का संचालन कहां से हो रहा है? इनका मास्टरमाइंड कौन है तथा इनके पीछे क्या उद्देश्य है इसकी विवेचना सभी अपने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर कर रहे हैं। कोई इन घटनाओं के पीछे 2024 के चुनाव के लिए वोटों के धु्रवीकरण की राजनीति बता रहा है तो कोई इसे विदेशी साजिश करार दे रहा है। भाजपा जो केंद्रीय सत्ता पर काबिज है और विपक्ष जो 2024 के चुनाव के लिए एकजुटता के प्रयासों में जुटा हुआ है एक दूसरे पर आरोप—प्रत्यारोपों की बौछार कर रहे हैं। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि इस घमासान में आम आदमी का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। देश के कई हिस्सों में इस समय सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़क रही है। और जहां यह आग नहीं है वहां इस आग को भड़काने की पुरजोर कोशिशें की जा रही है। अभी 2024 का चुनाव बहुत दूर है अगर हालात इसी तेजी से बिगड़ते रहे तो आम चुनाव तक हालात अत्यंत गंभीर होने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है। नेताओं की जुबान पर नफरत वर्सेस प्रेम की राजनीति चुनावी चर्चाओं के केंद्र में आ चुकी है। खास बात है नफरती भाषण और घटनाओं को सोशल मीडिया पर कैसे परोसा जा रहा है और उसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? यह सोचने की जरूरत आज कम से कम देश के नेताओं को तो कतई भी नहीं है। चुनावों पर इन घटनाक्रमों का क्या असर पड़ेगा? यह आने वाला समय ही बताएगा फिलहाल तो यह स्थिति आम आदमी को डरा रही है। नफरत और घृणा फैलाने वाली इन घटनाओं पर अगर तत्काल प्रभाव से रोक नहीं लगाई गई तो सांप्रदायिकता का यह जहर देश और समाज दोनों के लिए अति घातक सिद्ध होगा इसमें कोई संदेह नहीं है।

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