सवाल महिलाओं की सुरक्षा का

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अभी बीते सितंबर माह में अंकिता हत्याकांड को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उसके घर जाकर अंकिता के माता—पिता को इस बात का भरोसा दिलाया था कि पीड़ित परिवार को न्याय अवश्य दिलाएंगे। 25 लाख रुपए की आर्थिक सहायता के साथ उन्होंने दोषियों को कठोर सजा दिलाने का भरोसा दिलाया था। ठीक वैसे ही अब दिल्ली के छावला में दरिंदगी की शिकार हुई उत्तराखंड की बेटी के बारे में उनके द्वारा कहा जा रहा है। दरअसल छावला कांड किसी तरह से भी उस निर्भया कांड से कम नहीं था जिसे लेकर देश भर में भारी जनाक्रोश उमड़ पड़ा था। पहाड़ की बेटी को न्याय की लड़ाई में हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीनों आरोपियों को बरी होने के बाद हार चुके हैं। इस अति जघन्य अपराध के दोषियों को सजा हम इस केस की कमजोर पैरवी के कारण नहीं दिला सके। हालांकि निचली अदालत और हाईकोर्ट से इन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। निर्भया के माता—पिता ने अपनी बेटी के दोषियों के खिलाफ एक मुकम्मल जंग लड़ी थी और दोषियों को फांसी पर लटकाए जाने तक वह एक दिन भी चैन से नहीं बैठे थे। छावला कांड में हम हार के बाद कैंडल मार्च निकालकर और पीड़िता के मां—बाप को भरोसे व आश्वासनों की घुटृी पिलाकर ढांढस बधंा रहे है। ठीक वैसा ही रवैया हमारा अंकिता हत्याकांड में बना हुआ है। अंकिता के माता—पिता को अगर इस मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है तो क्यों? क्या सरकार इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की पहल नहीं कर सकती थी। हाईकोर्ट ने भले ही अब अंकिता के परिजनों को पक्षकार बनाकर उनसे यह पूछा हो कि वह एसआईटी की जांच से संतुष्ट क्यों नहीं है लेकिन अदालत खुद भी एसआईटी की जांच से संतुष्ट नहीं है। यह भी अब अदालत में साफ हो गया है। एसआईटी का कोई फॉरेंसिक साक्ष्य न जुटा पाना। बिना शासन—प्रशासन के अनुमति के रातो रात वनंतरा में बुलडोजर चलाया जाना। अंकिता की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट का सार्वजनिक न किया जाना। तथा परिजनों पर क्राउडफंडिंग का आरोप लगाया जाना और आरोपियों द्वारा केस वापस लेने का दबाव बनाया जाना आदि तमाम ऐसी बातें हैं जो यह संदेह पैदा करती है कि अंकिता को न्याय मिलना आसान बात नहीं है। यह बात सभी जानते हैं कि आरोपी न सिर्फ रसूखदार है बल्कि सत्ता पक्ष में उनकी मजबूत पकड़ है। यह अलग बात है कि पार्टी की छवि बचाने के लिए उनके खिलाफ पार्टी से निष्कासन जैसे कार्रवाई की गई हो लेकिन आरोपी पक्ष की शासन—प्रशासन में मजबूत पहुंच है। हाईकोर्ट ने अगर इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी तो संभव है कि इस मामले के आरोपियों को सजा हो पाए और पीड़ित परिवार को न्याय मिल पाए। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाओं की सुरक्षा का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार और उसके नेता महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है और उन्होंने रिजार्ट की जांच कराकर तथा पीड़ित परिवार को मुआवजा देकर व आरोपियों को पार्टी से निकाल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है।

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