नशा कारोबार पर प्रहार जरूरी

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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून अब क्राइम कैपिटल बनता जा रहा है ऐसा कोई भी अपराध नहीं है जिससे दून अछूता हो। हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती से लेकर ठगी तथा नकली नोटों की छपाई और चोरियों की वारदातों तक कुछ भी ऐसा नहीं है जो अपराध न हो रहा हो। इन तमाम आपराधिक वारदातों के पीछे नशे को एक बड़े कारण के रूप में देखा जाता रहा है। अलग राज्य बनने के बाद देहरादून में नशे का कारोबार तेजी से बढ़ा है। पुलिस प्रशासन और सरकार द्वारा नशा तस्करी को रोकने के अब तक जो भी दावे या प्रयास किए गए हैं वह ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुए हैं। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि राजधानी के तमाम श्ौक्षणिक संस्थानों से लेकर होटल और हॉस्टलों तक नशा तस्कर अपनी मजबूत पकड़ बना चुके हैं। गली मोहल्लों और बस्तियों में धड़ल्ले से नशे का कारोबार चल रहा है। बीते कल पुलिस द्वारा आशा रोड़ी चेक पोस्ट पर एक कार से आ रहे तीन युवकों को गिरफ्तार किया गया जिनके पास से 70 ग्राम स्मैक, चोरी का मोबाइल फोन, साढ़े तीन लाख रुपए मिले। खास बात यह है कि यह युवक स्विगी और जोमौटो जैसी कंपनियों में फूड डिलीवरी बॉय का काम करने की आड़ में नशे की सप्लाई करते थे। धंधे का स्तर भी देखिए कि इस नशे के धंधे से उन्होंने इतना पैसा कमा लिया कि प्लॉट और महंगी बाइके तक खरीद ली। हालांकि इस तरह का खुलासा कोई पहली बार नहीं हुआ है पहले भी दून में कई नशा तस्कर ऐसे पकड़े जा चुके हैं जो हॉस्टल और पीजी में टिफिन कैरियर का काम किया करते थे और खाने के साथ—साथ छात्र छात्राओं व अन्य ग्राहकों को उनकी मांग पर उनकी पसंद का नशा भी सप्लाई करते थे। उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु हरियाणा, पंजाब और हिमाचल से भारी मात्रा में ड्रग्स की सप्लाई होती है। भले ही सीमा चौकियों पर इसे गाहे—बगाहे पकड़े जाने के समाचार आते रहते हैं लेकिन हजारों करोड़ का यह धंधा अविराम जारी है। नशे का यह धधंा राजधानी और सूबे के बच्चों का भविष्य तबाह कर रहा है वही अपराधों का एक बड़ा कारण भी बना हुआ है। इस मुद्दे पर खुद संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अब बीते दिनों अधिकारियों की एक बैठक बुलाई थी जिसमें ड्रग्स कंट्रोलर विभाग व आबकारी तथा पुलिस विभाग के अधिकारियों को बुलाया गया था। मुख्यमंत्री ने नशा कारोबार पर सख्ती से रोक लगाने के निर्देश देते हुए 2025 तक नशा मुक्त प्रदेश बनाने की कार्य योजना तैयार करने को कहा था। उन्होंने संबंधित विभागों की संयुक्त टास्क फोर्स के गठन की बात करते हुए कहा था कि जब तक सभी विभाग मिलकर इस पर काम नहीं करेंगे नशे का कारोबार नहीं रोका जा सकता है। यह अलग बात है कि अब तक इस बैठक के निष्कर्षो पर कोई काम नहीं हो सका है। डीजीपी अशोक कुमार ने भी ट्रास्क फोर्स द्वारा ड्रग्स की खेप पकड़े जाने वाले क्षेत्र के थाना व चौकी प्रभारियों को जिम्मेदार बनाते हुए उन पर कार्रवाई करने की बात कही थी। भले ही इस पर अभी अमल नहीं हो सका है लेकिन 2025 तक अगर राज्य को एक मॉडल राज्य बनाना है तो इस कार्य योजना को धरातल पर उतारे जाने की जरूरत है।

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