पर्यटन प्रदेश के लिए बेहतरीन सड़कें जरूरी

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किसी भी प्रदेश के लिए अच्छी सड़कों को विकास का पहला मापदंड माना जाता है। यह सच है कि पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक जटिल परिस्थितियों में सड़कों को बनाना और उनको संरक्षित रखना दोनों ही जटिल काम है। लेकिन आज के तकनीकी युग में यह काम बहुत मुश्किल भी नहीं रह गया है। उत्तराखंड राज्य बनने से लेकर अब तक इस दिशा में राज्य सरकारों के स्तर पर कोई बड़ी पहल नहीं होने का ही नतीजा है कि आज भी राज्य की सड़कें बदहाल स्थिति में है। राज्य में आज जहां भी थोड़ी बहुत ठीक सड़के दिखाई दे रही हैं हैं वह केंद्र की देन है। केंद्र के द्वारा राज्य में ऑल वेदर रोड का निर्माण किया जा रहा है लेकिन इन रोडो का भी मानसूनी मौसम में बुरा हाल हो रहा है कहीं भूस्खलन के कारण यह सड़कें बंद हो रही हैं तो कहीं पानी के बहाव से सड़कें बह रही हैं जिसके चलते आवागमन में परेशानी हो रही है।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद सूबे के नेताओं द्वारा राज्य को एक पर्यटन राज्य के रूप में विकसित करने का अच्छा खाका तो खींचा गया था लेकिन उस पर दृढ़ शक्ति से कभी काम नहीं किया जा सका। राज्य में सिर्फ हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहे चार धाम ही नहीं हेमकुंड साहिब सहित अनेकों दर्जनों धार्मिक स्थल ऐसे हैं जो राज्य में धार्मिक पर्यटन को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकते हैं। यही नहीं फूलों की घाटी से लेकर ओली तक अनेक ऐसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल है जो पर्यटकों को आकर्षित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं लेकिन राज्य में आवागमन के बेहतर संसाधनों के अभाव के कारण आज भी सूबे का पर्यटन हाशिए पर ही है। राज्य में सड़कों की बदहाली स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद राजधानी देहरादून की सड़कें बरसाती सीजन के समय पर बदहाल हालत में है। राज्य में रेल सेवा आज भी वही है जहां अंग्रेजों के समय में थी हालांकि अब केंद्र सरकार द्वारा कराये जा रहे ऋषिकेश—कर्णप्रयाग रेल मार्ग का निर्माण अब एक अलग बात है। वही हवाई सेवाओं का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है बीते एक दशक से राज्य में थोड़ा विकास होता दिखा है जब पंतनगर, हल्द्वानी और देहरादून जैसे शहरों को हवाई मार्ग से जोड़ा गया। सूबे के नेताओं द्वारा अलग राज्य बनने के बाद विकास के बड़े—बड़े दावे करने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई लेकिन उन्होंने धरातल पर काम कितना किया यह सब जानते हैं। अगर राज्य सरकार ने थोड़ी सी भी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई तो इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तराखंड को विश्व मानचित्र पर केरल की तरह पर्यटन राज्य बनने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा।

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