शक्तिशाली शब्दों का समुच्चय ही मंत्र हैः आचार्य ममगांई

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देहरादून। मंत्र एक प्रतिरोधात्मक शक्ति है, मंत्र एक कवच है और मंत्र एक महाशक्ति है, शक्तिशाली शब्दों का समुच्चय ही मंत्र है, शब्द में असीम शक्ति होती है। यह बात अखिल गढ़वाल सभा भवन में दसवें दिन की कथा में प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगांई द्वारा कही गयी।
उन्होने बताया कि शिव शब्द की व्याख्या के साथ मंत्रों का हमारे जीवन में रक्षा व सुख साधना उपलब्धी का एक शक्ति समूह है जिसमें विश्वामित्र जी नें दूसरे स्वर्ग का निर्माण किया। सगर के साठ हजार पुत्रों का होना आदि मंत्र केवल संस्कृत में ही होते हैं जैसे यह मंत्र ट्टओम नमः शिवाय’ महामंत्र में तीन शब्द है, ट्टनमः शिवाय’ इसमें पांच अक्षर है, इसे पंचाक्षरी महामंत्र भी कहते हैं, पंचाक्षरी इसलिए कि अक्षरातीत है, नमः शिवाय में पांच अक्षर है जिसको ब्रह्म, प्रणव आदि नामों से भी पुकारा जाता है, उपनिषदों में कहा गया है— ट्टओम् इति ब्रह्म’ ओम् ब्रह्म है।
उन्होने बताया कि पतंजलि योगसूत्र में कहा गया है ट्टतस्य वाचक प्रणवः’ प्रणव ईश्वर का वाचक है, ब्रह्म एक अखण्ड अद्वैत होने पर भी परब्रह्म और शब्द ब्रह्म इन दो विभागों में कल्पित किया गया है, शब्द ब्रह्म को भली भांति जान लेने पर परब्रह्म की प्राप्ति होती है। ट्टशब्द ब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति’ शब्द ब्रह्म को जानना और उसे जानकर उसका अतिक्रमण करना यही मुमुक्षु का एकमात्र लक्ष्य है।
जिसे औंकार कहते हैं यही शब्द ब्रह्म है, आचार्य ममगांई ने कहा इस चराचर विश्व के जो वास्तविक आधार हैं, जो अनादि, अनन्त और अद्वितीय हैं, तथा जो सच्चिदानंद स्वरूप है उस निर्गुण निराकार सत्ता को हमारे शास्त्रों ने ब्रह्म की संज्ञा दी है, इसी ब्रह्म का वाचक शब्द ओम है, ब्रह्म इस सृष्टि में निमित्त कारण ही नहीं अपितु उपादान कारण भी है।
प्रारम्भ में एकमात्र ब्रह्म ही थे, उनकी इच्छा हुई ट्टएको हम बहुस्याम’ और उन्होंने ही अपने आपको इस जीव जगत के रूप में प्रकट किया, जैसे मकड़ी अपने अन्दर के ही तन्तुओं से जाला बुनती है, अतः यह विश्व—ब्रह्माण्ड ब्रह्म से भिन्न नहीं है, ब्रह्म ही विभिन्न रूपों मे प्रतिभासित हो रहे हैं, अतएव ब्रह्म का वाचक होने के कारण ट्टओम’ ईश्वर अवतार तथा जीव जगत सभी का वाचक हुआ। इस प्रकार यह शब्द निर्गुण—निराकार ब्रह्म का बोध कराता है। इस प्रकार ओउम् शब्द के द्वारा शब्दोच्चारण की सम्पूर्ण क्रिया प्रकट हो जाती है, अतः हम कह सकते हैं कि कण्ठ से लेकर ओंठ तक जितनी भी प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हो सकती है, ओउम में उन सभी ध्वनियों का समावेश है, फिर इन्ही ध्वनियों के मेल से शब्द बनते हैं, अतः ओम् शब्दों की समष्टि है, अब संक्षेप में ओंकार की रचना भी समझनी जरूरी है सूदूर क्षेत्रों से लोग आये वहीं 31 तारीख होनें वाली रक्षाबंधन की बधाई आचार्य सहित अध्यक्ष लक्ष्मी बहुगुणा महासचिव सुजाता पाटनीं ने दी। इस मौके पर उपाध्यक्ष सरस्वती रतुड़ी, कोषाध्यक्ष मंजू बडोनी, रोशनी सकलानी, लखपति बडोनी, चन्द्र शेखर तिवारी, माया तिवारी, सुशमा थपलियाल सहित कई लोग मौजूद रहे।

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