एक ऐतिहासिक आंदोलन

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि देश के विकास का रास्ता गांव के विकास से होकर जाता है। लेकिन यह अत्यंत ही दुखद सत्य है कि आजादी के 70 दशकों में अगर कोई सबसे अधिक उपेक्षित रहा है तो वह गांव ही रहे हैं। जहां किसान बसते हैं और खेतिहर मजदूर रहते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस देश के अन्नदाता इन किसानों ने ही अपनी हार्ड तोड़ मेहनत से देश में हरित क्रांति और श्वेत क्रांति लाने का काम किया है। वर्तमान की सरकारों को यह मुफ्त का राशन बांटने की जो क्षमता मिली है वह इस देश के अन्नदाताओं की बदौलत ही मिल सकी है। देश में आज किसानों की क्या स्थिति है? इस बात को समझने के लिए यह काफी है कि वर्तमान समय में देश के लघु किसानों (जिसकी संख्या 70 फीसदी है) उनकी फसलों और उत्पादों के मूल्य और उसका भुगतान सरकारों द्वारा सालों में दिया जाता है। सरकारों की गलत नीतियों के कारण देश के हजारों किसान आर्थिक तंगी में आत्महत्या करने पर विवश हो जाते हैं। केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर जो 3 नए कृषि कानून लाए गए थे उनके विरोध में सड़कों पर उतरे किसानों ने बीते साल 11 दिसंबर से आंदोलन शुरू किया था। किसानों का यह आंदोलन पूरे 1 साल तक चला। सर्दी, गर्मी और सरकारी उत्पीड़न की मार झेलते हुए 750 किसानों ने अपनी जान गंवा दी लेकिन सत्ता में बैठे नेताओं का मन नहीं पसीजा। पूरे 1 साल तक किसानों के इस आंदोलन को तोड़ने के लिए शासन—प्रशासन ने हर हथकंडा अपनाया लेकिन किसान न डरे न टूटे। आखिरकार जब सरकार को लगा कि इस आंदोलन का प्रभाव इतना सशक्त बन चुका है कि वह उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकता है। सरकार कहीं जाकर तब इस आंदोलन पर कुछ सोचने पर विवश हुई और प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। लेकिन किसान एमएसपी गारंटी कानून लाने व अन्य कुछ मांगों को लेकर आंदोलन पर अड़े रहे। पांच राज्यों के चुनाव सर पर खड़े हैं यही कारण है कि सरकार ने आनन—फानन में उनकी लगभग सभी मांगे मान ली है। अब किसानों ने अपने तंबू तो उखाड़ना शुरू कर दिए हैं लेकिन आंदोलन समाप्ति की घोषणा नहीं की है बल्कि आंदोलन स्थगित किया है इस चेतावनी के साथ कि अगर सरकार ने फिर कोई गड़बड़ किया, समझौते को मानने से आनाकानी की तो वह फिर सड़कों पर होंगे। सवाल यह है कि सरकार ने उनकी जायज मांगों को पहले क्यों नहीं माना क्यों उन्हें एक ऐतिहासिक और लंबे आंदोलन पर विवश किया गया? एक तरफ किसानों की आय दोगुना करने जैसे झांसे दिए जाने का काम किया। किसानों का 500 रूपये माह की सम्मान राशि की भीख देने का काम किया और दूसरी ओर 11 दौर की वार्ता के बाद भी उनकी बात न मानने की जिद की, यह सब क्या तमाशा है? इसे जनता भी जानती है। खैर इस सत्ता की जिद के आगे किसानों की जीत हुई यह अत्यंत ही सुखद है अच्छा हो कि सत्ता में बैठे लोग किसानों की दिशा और दशा को समझे और उसे सिर्फ वोट समझने की भूल न करें।

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