राजनीति! मतलब भ्रम और झूठ

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आज कल देश की राजनीति में दो शब्दों की गूंज सबसे ज्यादा सुनाई दे रही है, भ्रम और झूठ। संसद से लेकर सड़कों तथा राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों तक में भ्रम और झूठ का बोलबाला है। संसद में जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का भाषण चल रहा था तब पीएम मोदी से लेकर गृह मंत्री शाह और उनके तमाम मंत्री बार—बार उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाते दिखे। कल देहरादून में भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी प्रदेश प्रभारी दुष्यंत से लेकर सीएम धामी तक तमाम नेताओं ने कांग्रेस पर भ्रम और झूठ फैलाने का आरोप लगाया गया। 18वें लोकसभा चुनाव से पहले तक हमने कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं को इसी तरह के आरोप भाजपा पर लगाते देखा था। लेकिन अब वही काम सत्ता पक्ष द्वारा किया जा रहा है। देश के लोग भी हैरान है उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या वर्तमान दौर में राजनीति का मतलब झूठ और भ्रम फैलाना ही हो गया है? इसके अलावा देश के नेताओं के लिए अन्य राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया है। यूं तो राजनीति में चुनाव के दौरान पहले से ही राजनीतिक दल और नेताओं द्वारा जनता को लुभाने के लिए लोक लुभावन घोषणा का चलन रहा है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से झूठे वायदे और प्रलोभनों को जनता के सामने परोसने के तौर तरीकों में जिस तरह का बदलाव देखने को मिला है उसने देश की राजनीति को जन सरोकारों से दूर करते हुए सिर्फ मिथ्या प्रचार और झूठ पर ही निर्भर बना दिया है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने बड़े जोर—शोर से अच्छे दिन लाने का भरोसा दिलाते हुए कहा गया कि वह विदेशों में जमा काले धन को वापस लायेगी। यही नहीं गरीबों के खातों में 15—15 लाख डालने तक के दावे किये गये। किसानों की आय दोगुना करने और हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार देने के वायदों का प्रचार भी खूब किया गया। मंहगाई को कम करने से लेकर आत्मनिर्भर भारत और अब विकसित भारत तक की जो घोषणाएं की जाती है उनमें कितना झूठ और भ्रम है इस बात को अब 10 सालों में देश का हर आम आदमी जान और समझ चुका है। आज जो भाजपा के नेता कांग्रेस पर भ्रम और झूठ फैलाने का आरोप लगाकर उन्हे चेतावनी दे रहे है उन्हे इस बात को सोचने की जरूरत है कि यह भ्रम और झूठ फैलाने का काम किसने शुरू किया था? पीएम मोदी जो स्वंय को अब अवतार बताने तक पहुंच चुके है क्या इससे भी बड़ा कोई झूठ और भ्रम हो सकता है। चुनाव के दौरान जो संविधान बदलने की बात शुरू हुई थी क्या उसे भाजपा के नेताआें ने शुरू नहीं किया था? तब खुले मंचो से भाजपा प्रत्याशी इसकी घोषणा कर रहे थे और जब इसके परिणाम सामने आने लगे है तो भाजपा नेता कांग्रेस पर झूठ और भ्रम फैलाकर चुनाव जीतने का प्रयास करने का आरोप लगा रहे है। भाजपा नेताओं को अभी भी यह समझने की जरूरत है भ्रम और झूठ तथा भय की राजनीति का रास्ता छोड़कर जनहित की राजनीति पर लौट आये। कांग्रेस और विपक्षी दलों के पास भाजपा को हराने की कोई ताकत नहीं थी। भाजपा को अब अगर हार का सामना करना पड़ रहा है या करना पड़ सकता है तो इसका सबसे अहम कारण उसके द्वारा 10 सालों में जो भ्रम फैलाने और झूठा प्रचार करने व भय फैलाना ही है। भाजपा अगर इस सच को स्वीकार नहीं करती है तो उसकी अवनति से अब कोई नहीं उबार सकेगा।

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