उत्तराखंड में मानसून को आए अभी 10 दिन का समय ही हुआ है लेकिन सूबे की राजधानी देहरादून से लेकर अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ तथा चंपावत और बागेश्वर से लेकर हरिद्वार तक जिस तरह जल प्रलय से आम जनजीवन संकटग्रस्त दिखाई दे रहा है वह इस बात को प्रमाणित करता है कि भले ही शासन प्रशासन स्तर पर मानसूनी मुश्किलों से निपटने के चाहे जो प्रबंधन के दावे किए गए हो वह आम आदमी के जान माल की सुरक्षा करने के लिए नाकाफी हैं। बात अगर राजधानी दून की ही करें तो स्मार्ट सिटी की सड़कों को हम हर रोज दरिया बनते देख रहे हैं। राजधानी देहरादून के आवासीय क्षेत्रों में जल भराव की समस्या का कोई इलाज नगर निगम क्या कर पाता जब नगर निगम परिसर में ही घुटनों तक पानी भरने से नहीं रोका जा सका। नदियों और नाले—नालियों की सफाई अगर ठीक ढंग से की गई होती तो क्या राजधानी के लोगों को वह आफत भुगतनी पड़ती जो वह भुगत रहे हैं। सड़कों की हालात इतने खराब है कि इन पर चलना किसी भी तरह सुरक्षित नहीं रह गया है। कल काशीपुर में सड़कों पर नावों के जरिए जलमग्न क्षेत्रों से प्रभावित लोगों को निकालने का काम किया गया। उधमसिंह नगर, सितारगंज और लालकुआं तथा काठगोदाम में बेहद ही खराब स्थिति देखी गई। गौला नदी के उफान पर आने से स्टेडियम और रेलवे स्टेशन तक जलमग्न हो गए। भूस्खलन के चलते राज्य के नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे सहित सवा तीन सौ सड़कों के बंद होने से आवागमन पूरी तरह से ठप हो गया है। कहीं लोग भूस्खलन की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं तो कहीं नदियों नालों के तेज बहाव की चपेट में आकर मर रहे हैं। हालात किसी एक स्थान विशेष के ही खराब नहीं है अब तक इस मानसूनी आपदा की जद में आए हजारों लोगों को अपने घर छोड़ने पर विवश होना पड़ा है। लोगों के घरों में पानी घुस रहा है तो कहीं भूस्खलन से मकान के जमींदोज होने का खतरा मंडरा रहा है। पुल और पुलिया पानी के तेज बहाव में ढह रहे हैं तो कहीं पूरी सड़के ही गायब हो चुकी हैं और लोगों तक जरूरी सामान की आपूर्ति तक नहीं हो पा रही है। कहीं बिजली आपूर्ति ठप हो रही है तो कहीं पेयजल लाइने टूटने से लोगों तक पीने का पानी भी नहीं पहुंच पा रहा है ऐसी स्थिति में अगर किसी व्यक्ति की तबीयत ज्यादा खराब हो जाए तो उसे डोली से ही ढोकर अस्पताल पहुंचाया जा रहा है। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि लोगों की जान माल की सुरक्षा उनकी पहली प्राथमिकता है। वही राज्यपाल आपदा पर फेक न्यूज वालों पर सख्त कार्रवाई की बात कह रहे हैं। आपदा कोई चुनावी विषय तो है नहीं जो मीडिया किसी के प्रभाव में या लालच में गलत खबरों का प्रसारण करेगा। आम आदमी की शिकायत है कि किसी समस्या के समय अगर कंट्रोल रूम को फोन किया जाता है तो घंटी घनघनाती रहती है और फोन नहीं उठता है। यह ठीक है कि जब आपदा राज्य व्यापी है तो सबकी बात नहीं सुनी जा सकती लेकिन आपदा से निपटने की पूर्व तैयारियंा अगर गंभीरता से की गई होती तो ऐसे हालात भी पैदा नहीं होते।