जनता व सत्ता के बीच चुनाव

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लोकसभा चुनाव के चार चरणों में 543 लोकसभा सीटों में से 379 सीटों के लिए मतदान संपन्न हो चुका है पांचवें चरण में 49 सीटों के लिए 20 मई को वोट डाले जाएंगे। वर्तमान लोकसभा चुनाव की शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि यह चुनाव भी 2014 और 2019 की तरह एक तरफा ही रहने वाला है। सत्ताधारी एनडीए और भाजपा के नेताओं ने जिस तरह से सुनियोजित ढंग से अबकी बार 400 पार और चुनाव से ऐन पूर्व अर्धनिर्मित राम मंदिर में रामलला की मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के जरिए राम लहर पैदा की गई उसे देखकर भले ही जानकार भी यह कहने लगे थे कि आएंगे तो मोदी ही, लेकिन मतदान के पहले चरण से राष्ट्रीय पटल पर ऐसी कुछ घटनाएं सामने आ गई कि हवा का रुख बदलना शुरू हो गया। जो अभी तक थमता नजर नहीं आ रहा है। इंडिया गठबंधन की जिन गांठो को जोड़ना सहयोगी दलों के नेताओं के लिए बड़ी मुश्किल बनता जा रहा था, कांग्रेस का 25 गारंटी वाला वह घोषणा पत्र आते ही ऐसा तहलका मचा कि सभी क्षेत्रीय छत्रप देखते ही देखते कांग्रेस के साथ कदमताल के लिए तैयार होते चले गए। राहुल गांधी की सामाजिक न्याय यात्रा जिसका आधार उसका घोषणा पत्र बना जिसे सामाजिक न्याय पत्र के नाम से लाया गया, विपक्ष के लिए जैसे एक संजीवनी बन गया। पटना के गांधी मैदान की रैली में उमड़ी भीड़ ने विपक्षी महत्वाकांक्षाओं को सिर्फ नए पंख ही नहीं लगाए बल्कि ऊंची उड़ान के हौसले पर ऐसा सवार कर दिया कि पूरे चुनाव की हवा का रुख बदल कर रख दिया। सत्ता को कटघरे में करने के सबूत मिलते गए और विपक्षी हावी होते चले गए। हालत यह हो गए कि चौथे चरण तक चुनाव आते—आते भाजपा को अपनी उपलब्धियों के मुद्दे और नारे भूल कर कांग्रेस के न्याय पत्र पर सवाल उठाने और अपनी जनसभाओं में लोगों को डराने पर बाध्य हो गये कि अगर कांग्रेस सत्ता में आ गई तो आपकी संपत्ति और जेवर यहां तक की मंगलसूत्र व भ्ौंस भी छीन लेगी और मुसलमान को दे देगी। भाजपा के नेताओं द्वारा अब अपनी जनसभाओं में लोगों से पूछा जा रहा है कि क्या आप ऐसे लोगों के हाथों में देश की सत्ता देंगे इन नेताओं को यह भी समझ नहीं आ रहा है कि वह अपने भाषणों में जो कह रहे हैं उसका क्या मतलब है कांग्रेस ने खुद अपने न्याय पत्र का उतना प्रचार नहीं किया है जितना भाजपा नेताओं द्वारा किया गया है। वह जो जनता को भय दिखा रहे हैं वह उनकी अपनी संभावित हार का भय है। विपक्ष कोई नेता प्रधानमंत्री बनने लायक नहीं है या उनके पास पीएम मोदी का कोई भी विकल्प नहीं है जैसी बातें किया जाना इस बात का साफ संकेत है कि देश में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है और इसका अंदाजा भाजपा नेताओं को बखूबी हो चुका है। चुनाव के बाकी तीन चरण शेष बचे हैं और उसमें एनडीए या भाजपा के नेता कोई ऐसा करिश्मा कर पाने की स्थिति में नहीं है कि परिणाम को पलटा पाये। हार का डर अब नेताओं के भाषणों व उनकी बॉडी लैंग्वेज में दिखने लगा है। इस दौर में जो भी चुनावी सर्वे और विश्लेषण प्रचारित व प्रसारित किये जा रहे हैं उनमें अधिकांश प्रायोजित है। इस चुनाव में एनडीए व इंडिया गठबंधन के बीच अत्यंत ही कांटे का मुकाबला है। इंडिया गठबंधन भले ही बढ़त बनाती दिख रही है लेकिन हार जीत का फैसला बहुत ही कम अंतर से होने वाला है। दरअसल यह चुनाव विपक्ष ने जनता और सत्ता के बीच होने वाला चुनाव बना दिया है। और लोकतंत्र में जनता की हार नहीं हो सकती है। क्योंकि जनता की हार का मतलब लोकतंत्र की हार है।

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