मीडिया जिम्मेवार या प्रशासन

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क्या वर्तमान दौर की राजनीति में मीडिया को सत्ता पक्ष के सच को सामने रखने पर डराने धमकाने का काम किया जा रहा है और शासन—प्रशासन अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए पत्रकारों को जेल भेजने और उन पर मुकदमे दर्ज करने का काम कर रहा है इन सवालों के साथ हम कल आए सुप्रीम कोर्ट के उसे फैसले का जिक्र करना जरूर चाहेंगे जिसमें न्यूज क्लिक के संपादक और संस्थापक की गिरफ्तारी को असवैधानिक बताकर प्रवीरपुर कायस्थ को तुरंत रिहा करने के आदेश दिए गए हैं जिन्हे देशद्रोह जैसी गंभीर धाराओं में गिरफ्तार कर 3 अक्टूबर 2023 को जेल में डाल दिया गया था। वही हम उत्तराखंड के पत्रकार गजेंद्र रावत की भी बात करेंगे जिन्होंने केदारनाथ मंदिर में चढ़ाई गई सोने की परत के नकली या मिलावटी होने का मुद्दा उठाया था जिसे लेकर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया तथा एक उस ताजा मामले का उल्लेख भी करेंगे जिसमें चार धाम की तैयारियों को लेकर सवाल उठाने वाले दैनिक भास्कर अखबार के पत्रकार मनमीत पर सरकार ने कल मुकदमा दर्ज कराया है।
सवाल यह है कि क्या इस दौर में पत्रकारिता के मायने सिर्फ सत्ता के यशोगान तक ही सीमित होकर रह गए हैं या करने के प्रयास किया जा रहे हैं? सरकार के खिलाफ या उसकी खामियां उजागर करने वालों पर मुकदमे दायर कर और उन्हें जेलों में डालने का डर दिखाकर क्या संदेश देने की कोशिश शासन— प्रशासन में बैठे लोगों द्वारा की जा रही है यह समझना आज सभी के लिए बेहद जरूरी हो गया है। क्या मनमीत की गिरफ्तारी या उस पर किए गए मुकदमे से चारधाम यात्रा की व्यवस्थाएं चाक चौबन्द हो जाएगी। शासन—प्रशासन को इसके लिए यात्रा की तैयारियों की जमीनी हकीकत समझना भी जरूरी है। अपनी नाराजगी का ठीकरा मीडिया के सर नहीं फोड़ा जा सकता है। पहले ही दिन से इस बात की पुख्ता व्यवस्था क्यों नहीं की गई कि बिना रजिस्ट्रेशन के कोई यात्रा पर नहीं जा सकेगा।
अगर लोग बिना रजिस्ट्रेशन के धामों में पहुंच रहे हैं तो फिर रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था का ही क्या औचित्य रह गए जाता है। हरिद्वार और ऋषिकेश में बैठे ट्रैवल एजेंट अगर गड़बड़ी कर रहे हैं तो उन्हें रोकने की जिम्मेदारी भी प्रशासन की ही है। अधिकारी जब खुद ही मान रहे हैं कि जांच की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण बड़ी संख्या में बिना रजिस्ट्रेशन के ही लोग पहुंच गए या उनका पंजीकरण जिस दिन का था उससे पहले ही यात्रा पर आ गए। क्षमता से अधिक यात्रियों के पहुंचने के कारण व्यवस्थाओं का चौपट होना स्वाभाविक ही है। इसके अलावा इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यात्रा शुरू होने के बाद भी यात्रा की तैयारियों को पूरा नहीं किया जा सका है। जिसके कारण यात्रियों को जगह—जगह लंबे समय रोका जा रहा है और यात्रियों का पूरा यात्रा शेड्यूल ही खराब हो रहा है उनके द्वारा होटल और हेली की जो बुकिंग कराई गई थी वह उसके समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। उनका पैसा और समय दोनों ही बर्बाद हो रहे हैं जो यात्री नियमानुसार यात्रा करने आए हैं उन्हें भी अव्यवस्थाओं के कारण जो दिक्कतें उठानी पड़ रही है उसके कारण उनकी नाराजगी भी स्वाभाविक है।
भले ही प्रशासन द्वारा ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन किसी भी कारण से रोके गए हो लेकिन अचानक लिए गए इस निर्णय के कारण उन यात्रियों पर क्या गुजरी जो हजारों किलोमीटर का सफर करके हरिद्वार तक आए थे और अब रजिस्ट्रेशन न हो पाने के कारण या तो वापस लौट कर जा रहे हैं या फिर 2 दिन हरिद्वार में पड़े रहना उनकी मजबूरी हो गया है। इस सच से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि भारी संख्या में आने वाले यात्रियों के लिए व्यवस्थाएं करना कोई आसान काम नहीं है और न इसकी संख्या का कोई सही अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन हर साल चार धाम यात्रियों की संख्या में हो रही बड़ी बढ़ोतरी के मद्दे नजर शासन—प्रशासन को इस यात्रा की व्यवस्थाओं के लिए अलग प्रशासनिक और प्रबंधन संस्था का ढांचा तैयार करना चाहिए बद्री—केदार समिति के भरोसे चलने वाली इस यात्रा को अब सुचारू रूप से संचालित किया जाना संभव नहीं है।
यात्रा के लिए सरकार यात्रा मार्गाे पर स्थाई व्यवस्थाएं विकसित करनी पड़ेगी यात्रा शुरू होने से पहले सड़कों की मरम्मत और पेयजल, स्वास्थ्य, शौचालय की अस्थाई व्यवस्था से अब बात बनने वाली नहीं। सूबे की सरकार चाहती है कि आने वाले समय में इस तरह की अव्यवस्थाओं से दो—चार न होना पड़े तो उसके लिए दूरगामी फैसले लेने ही होंगे।

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