कोरोना के बाद निपाह

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केरल में निपाह वायरस के संक्रमण के छह मामले सामने आने पर अगर आईसीएमआर ( भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) द्वारा चिंता जताई गई है और इसे कोरोना से भी भी कई गुना अधिक घातक बताया गया है तो इसे बेवजह नहीं कहा जा सकता है। केरल में अभी तक निपाह संक्रमण के छह मरीज सामने आए हैं जिनमें से दो की मौत हो चुकी है जबकि चार का इलाज चल रहा है। आईसीएमआर के अनुसार इस संक्रमण की दो प्रमुख बातें यह है कि इस संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर कोरोना से अत्यधिक ज्यादा है इस संक्रमण में मृत्यु दर 40 से 70 फ़ीसदी तक बताई जा रही है जबकि कोरोना के तमाम खतरनाक वेरिएंट से मृत्यु दर सिर्फ 2 से 3 फीसदी थी इससे यह सहज समझा जा सकता है कि अगर निपाह संक्रमण के शिकार 100 लोग भी होते हैं तो उनमें से आधे से अधिक लोगों की मौत सुनिश्चित है। केरल में निपाह के जो संक्रमित 6 मरीज मिले हैं उन्हें एक ही व्यक्ति के संपर्क में आने से संक्रमण हुआ है। इसका सीधा अर्थ है कि एक निपाह संक्रमित बहुत सारे लोगों को संक्रमित कर सकता है। भले ही अभी निपाह का दायरा केवल केरल तक सीमित है लेकिन इस संक्रमण का दूसरे राज्यों में पहुंचने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पड़ोसी कर्नाटक राज्य की सरकार द्वारा केरल में मिले निपाह संक्रमितों के मद्देनजर अपने यहां सतर्कता बरतने के निर्देश जारी कर दिए गए। संक्रमण रोक भले ही वह कोई भी हो प्रारंभिक दौर में उसके बारे में आम आदमी को कोई भी खास जानकारी नहीं होती है न तो संक्रमण के लक्षणो के बारे में आम आदमी को कुछ पता होता है और न उससे बचाव का क्या प्रभावी उपाय हो सकता है इसके बारे में कोई खास जानकारी होती है। कोरोना काल में यही देखा गया था कि कई लोगों और देशों द्वारा इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया गया था जिसके कारण विश्व के तमाम देशों तक यह संक्रमण तेजी से फैल गया था।। ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि चिकित्सा विभाग और आईसीएमआर द्वारा संक्रमण निपाह के बारे में आम आदमी को जागरूक बनाया जाना चाहिए। जैसे कोरोना काल में उसके लक्षणों और एहतियात के तौर पर बार-बार हाथ धोने और मांस्क पहनने तथा दो गज की दूरी बनाए रखने और भीड़भाड़ वाले स्थानो पर न जाने की सलाह दी गई थी। क्योंकि आम आदमी को जब तक किसी विषय या समस्या की जानकारी ही नहीं होगी तो वह अपना कोई बचाव नहीं कर सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है कि संक्रामक रोगों में इलाज से ज्यादा प्रभावी होते हैं बचाव के उपाय। प्रारंभिक दौर में किसी भी संक्रामक रोग की कोई दवा या टीका भी नहीं होता है जैसा कि कोरोना काल में भी देखा गया था। चिकित्सा विज्ञान किसी भी संक्रामक रोग से निपटने के लिए सबसे पहले ह्यूमैनिटी बढ़ाने वाली दवाओ और एंटीबॉडी पर जाता है। निपाह के मरीजों को मोनोक्लोनल नाम की एंटीबॉडी की 10 डोज भेजी गई है क्योंकि अभी इनकी उपलब्धता इतनी ही थी 20 डोज और मंगाई गई है यह दवा कितनी कारगर रहती है प्रयोग के बाद ही पता चलेगा लेकिन कोरोना की तरह अगर निपाह को लेकर कोई भी लापरवाही बरती जाती है तो वह खतरनाक साबित हो सकती है।

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