मुसीबत में हरक और कांग्रेस

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पूर्व काबीना मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के ठिकानों पर विजिलेंस के छापे को लेकर भले ही कांग्रेस के नेता इसे राजनीति से प्रेरित बदले की कार्रवाई बता रहे हो लेकिन आज अगर हरक सिंह रावत मुसीबत से घिरे हैं तो उसके लिए वह स्वयं ही जिम्मेदार भी हैं। उनके द्वारा बीते दो दशकों में जिस तरह के काम किए गए हैं उनका नतीजा यह है कि वह आज न तो कांग्रेस के विश्वासपात्र रहे हैं और न भाजपा के। 2016 में तत्कालीन हरीश रावत के नेतृत्व वाली सरकार को गिराने के लिए रचे गए षड्यंत्र और कांग्रेस में बड़े विभाजन के सूत्रधार रहे डा. हरक सिंह लंबे समय तक अगर भाजपा में नहीं टिक सके तो इसके पीछे भी ठोस और बड़े राजनीतिक कारण निहित थे। हरीश रावत खेमा कदाचित भी उनकी कांग्रेस में वापसी के पक्ष में नहीं था और आज भी वह उनको स्वीकार्य नहीं है पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा टिकट तक उन्हें नहीं दिया गया, बड़े दबाव के बाद उनकी पुत्रवधू अनुकृति को टिकट दिया गया मगर वह चुनाव हार गई। यह उनके लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका था। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में यह पहली मर्तबा है जब वह राजनीति के हाशिए से से बाहर दिखे हैं। 2016 के जिस स्टिंग मामले में जिसमें वह खुद शिकायती थे अब वह खुद उसके लपेटे में आ गए हैं। सीबीआई कोर्ट में अब उन पर भी मुकदमा चल रहा है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में जब वह वन मंत्री थे तब उनके कारनामों की जानकारी होने पर भाजपा उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में जुटी थी तब वह येन केन प्रकारेण कांग्रेस में आने में सफल हो तो गए लेकिन उनकी विश्वसनीयता आज तक भी बहाल नहीं हो सकी है और शायद कभी बहाल हो भी नहीं पाएगी। कोई भी नेता भले ही कितना भी राजनीति का कुशल खिलाड़ी क्यों न हो लेकिन उसकी विश्वसनीयता की क्या महत्वत्ता होती है? अब तक डा. हरक सिंह को समझ में शायद यह बात आ गई होगी सिर्फ अवसरवादिता और अपने राजनीतिक स्वार्थ तथा सत्ता की लोलुपता किसी भी नेता को स्थायित्व और लोकप्रियता प्रदान नहीं कर सकती है। वर्तमान समय में उनके खिलाफ जो कानूनी कार्रवाई हो रही है भले ही वह बदले की भावना से की जा रही हो लेकिन वह सच को भला कैसे नकार सकते हैं कि सरकारी पैसे से खरीदे गए हैवी जनरेटर और अन्य उपकरण उनके कॉलेज और पेट्रोल पंप से बरामद नहीं हुए हैं। यह कितना हास्यास्पद है कि डीएफओ उनके कॉलेज को जनरेटर दान में दे दे और उन्हें इसकी जानकारी तक न हो। विजिलेंस की यह छापेमारी की कार्यवाही ऐसे समय में हुई है जब डा. हरक सिंह रावत पटरी से उतरे अपने राजनीतिक कैरियर को फिर से लाइन पर लाने के प्रयास में जुटे थे तथा हरिद्वार सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए जमीन तैयार कर रहे थे। इस मामले से उनके मंसूबों पर पानी फिर सकता है। हालांकि कांग्रेस के अंदर भी हरक सिंह को लेकर कम विवाद नहीं है और उन्हें लोकसभा का टिकट मिलना इतना आसान नहीं दिख रहा था लेकिन इस मामले में यह छापेमारी उनकी राह में बड़ा रोडा साबित होगी कांग्रेस के जिन नेताओं की पहल पर उनकी कांग्रेस में वापसी हुई थी वह भले ही अभी उनके बचाव में जुटे हो लेकिन यह प्रकरण कांग्रेस के लिए भी एक बड़ी मुसीबत बनकर सामने खड़ा हो गया है जिसका पार्टी को बड़ा चुनावी नुकसान हो सकता है। कांग्रेस के कुछ नेता अब दबी जुबान में डॉ. हरक सिंह के बारे में यही कह रहे हैं खुद तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी साथ लेकर डूबेंगे।

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