अन्नदाता का ख्याल किसे है?

0
185


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के चुनाव से पूर्व घोषणा की थी कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना बढ़ाया जाएगा अब केंद्र की भाजपा सरकार को 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए देश के ग्रामीण अंचल से जुड़े खेती—बाड़ी और किसानों के समर्थन की फिर जरूरत है। यही कारण है कि अब तक के कार्यकाल में किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार न कर पाने वाली केंद्र की भाजपा सरकार को अब इन किसानों के हितों की फिर याद आ रही है। बीते कल सरकार द्वारा धान, मक्का, अरहर, मूंग और उड़द सहित तिलहन की फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि की घोषणा कर दी गई है। जिसके बारे में यह प्रचारित किया जा रहा है कि बीते एक दशक में समर्थन मूल्य में की गई यह दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि है। इस मूल्यवृद्धि पर अगर एक नजर डाले तो यह 2 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के बीच है। सबसे अधिक वृद्धि मूंग दाल के समर्थन मूल्य में की गई है जो 10 फीसदी है। यहां यह समझना जरूरी है कि सरकार जो समर्थन मूल्य तय करती है उस पर खरीद की कोई गारंटी नहीं देती है। अभी बीते 2 साल पहले जब देश के किसान सरकार द्वारा लाए गए तीन काले कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे थे तब सरकार ने एक साल चले आंदोलन के बाद यूपी सहित कुछ राज्यों के चुनाव के मद्देनजर इन तीन काले कानूनों को तो वापस ले लिया था लेकिन समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी की मांग को नहीं माना था। जिसके लिए किसान अभी संघर्ष कर रहे हैं। इस समर्थन मूल्य का किसानों को वास्तविक फायदा तभी हो सकता है जब सरकार समर्थन मूल्य पर उनकी उपज को खरीदें। यह समर्थन मूल्य किसानों को भ्रमित करने के जरिए के अलावा कुछ भी नहीं है। किसानों की आय को दोगुना करने के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा क्या किया गया है अगर उस पर गौर करें तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और किसान सम्मान निधि के अलावा कुछ भी विशेष नहीं किया गया है। उसकी जमीनी हकीकत यह है कि फसल बीमा का कोई लाभ किसानों को बीमा कंपनियों द्वारा दिया ही नहीं जाता है और जो सम्मान निधि है 500 रूपये महीना उससे गरीब किसानों का कुछ भला नहीं हो रहा है क्योंकि इस पैसे से वह महीने में सिर्फ 5 लीटर डीजल ही खरीद सकते हैं जो 2 बीघा जमीन की जुताई में खर्च हो जाता है। अब सवाल उठता है कि किसानों की आय में कितनी बढ़ोतरी हुई है तो सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि यह प्रति परिवार 10 हजार प्रति माह के आसपास है जो बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में इससे भी कम है। सर्वे के अनुसार आज भी देश का हर किसान परिवार 74 हजार से अधिक के कर्जे में डूबा हुआ है। देश के लाखों किसान ऐसे हैं जो समय पर इस कर्ज का ब्याज तक नहीं चुका पाते हैं और बैंकों के उत्पीड़न के शिकार है। किसानों द्वारा जब कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन किया गया तो एक साल तक किसान अपना घर बार छोड़कर सड़कों पर पड़े रहे थे। जिसमें से 750 से अधिक किसानों की जान चली गई थी। किसानों के प्रति सरकार कितनी संवेदनशील है यह उसका एक उदाहरण है। सत्ता में बैठे लोगों ने इन सड़कों पर पड़े किसानों को आतंकी तक बताने में कोई संकोच नहीं किया था। आज अगर देश में कोई आर्थिक बदहाली का शिकार है तो वह छोटे मझोले किसान ही है जिनका खेती किसानी से कुछ भला नहीं हो रहा है और कुछ और करना उनके बस की बात नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here