उत्तराखण्ड सरकार द्वारा नकलरोधी कानून लाये जाने से क्या राज्य की भर्ती परीक्षाओं में नकल माफिया को रोका जा सकेगा। यह सवाल इसलिए भी लाजमी है क्योंकि देश में जो भी कानून बनाये गये है उनके द्वारा कोई भी अपराध पूर्ण रूप से रूका हो ऐसा कभी भी महसूस नहीं किया जा सका है। वर्षो पहले देश की राजधानी में हुआ निर्भया कांड इसका एक बड़ा उदाहरण है। उस समय पूरे देश में दुष्कर्म करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाये जाने की मांग जोर शोर से उठी थी और सरकार द्वारा भी इस पर गम्भीरता से विचार करते हुए दुष्कर्म करने वालों पर नये कानून जिनमें ट्टपोक्सो एक्ट’ भी शामिल है, बनाकर जनता को आश्वासन दिया गया था कि अब देश में दुष्कर्म के मामलों में कमी आयेगी और महिला अपराधों में लगाम लग सकेगी। लेकिन देखा गया है कि तब से आज तक देश में न तो दुष्कर्म के मामलों में कमी आयी है और न ही महिला सम्बन्धित अपराध ही रूक सके है। ऐसे में यह मानना लाजमी है कि कानून बनाये जाने से न कोई अपराध में कमी आती है और न अपराध रोके जा सकते है। हां एक बात अवश्य कही जा सकती है कि कुछ समय के लिए अपराधों में कमी जरूर लाई जा सकती है। सरकार को चाहिए कि नकल रोकने के लिए कानून के साथ—साथ वह सम्बन्धित विभागों पर भी निगरानी रखे ताकि वह नकल के लिए कोई अन्य तरकीब न लगा सके। क्योंकि राज्य में हुई सभी भर्ती परीक्षा घोटालों में अमूमन यही देखा गया है कि सम्बन्धित आयोगों के ही कुछ लोगों की मिलीभगत के चलते राज्य में यह सभी भर्ती घोटाले हुए है। जिनसे राज्य के युवाओं का भविष्य अंधकारमय हुआ है। सरकार को अगर राज्य में भर्ती परीक्षाओं पर नकल रोकनी है तो उसे इस बात पर भी निगरानी रखनी होगी कि कहीं से भी भर्ती परीक्षा का पेपर लीक न हो पाये तभी राज्य में नकल माफिया पर अंकुश लगाया जा सकता है सिर्फ नकलरोधी कानून बनाकर अगर यह सोचा जा रहा है कि राज्य में नकल रूक सकेगी तो यह हास्यापद बात ही है।