भर्ती घोटालों का भाजपा कनेक्शन

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भर्तियों के पेपर लीक मामलों में जिस तरह के एक के बाद एक भाजपा नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं उससे भाजपा के शीर्ष नेताओं का असहज होना स्वाभाविक है। सवाल यह है कि जब सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा इस तरह के कामों को अंजाम दिया जाएगा तो पार्टी यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती है कि इस नेता से उसका कोई संबंध नहीं है। भाजपा नेता और मंडल अध्यक्ष संजय धारीवाल का नाम जब एई—जेई भर्ती पेपर लीक मामले में सामने आया तो भाजपा ने खुलासे से पहले ही उसका इस्तीफा ले लिया और उसकी पार्टी सदस्यता भी निरस्त कर दी गई। अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भटृ कह रहे हैं कि ऐसे लोगों के लिए भाजपा में कोई जगह नहीं है। यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले में जब हाकम सिंह का नाम सामने आया था तब भी महेंद्र भटृ ने कहा था कि हाकम सिंह ने अगर कुछ गलत किया है तो उसका नतीजा भी वही भुगतेगा। आज अगर कांग्रेसी नेता इस मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी करते हुए यह कह रहे हैं कि भाजपा में अभी न जाने कितने और हाकम सिंह और धारीवाल है यह तो महज मोहरे भर हैं इन्हें संरक्षण देने वालों के नाम भी सामने आने चाहिए। इस बात की आज अगर संभावनाएं जताई जा रही है कि इस भर्ती घोटालों के गोरखधंधे में कुछ बड़े सफेदपोशों के नाम भी सामने आ सकते हैं तो वह बेवजह नहीं है। एक तरफ इन घोटालों में आयोगों के अधिकारियों की संलिप्तता उजागर हो चुकी है तो वहीं इस खेल में सूबे के कुछ बड़े नेता भी शामिल हो सकते हैं। अधीनस्थ चयन सेवा आयोग के अध्यक्ष एस राजू ने जब अपना पद छोड़ा तो उन्होंने इस बात का उल्लेख मीडिया के सामने किया था कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से इसकी शिकायत की थी लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया था तथा किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह बात हैरान करने वाली ही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की ऐसी क्या मजबूरियां थी जिसके कारण उन्होंने भ्रष्टाचार के इस बड़े मुद्दे पर चुप्पी साधने में ही भलाई समझी। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने से पहले अपनी सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीतियों का दंभ भरने वाले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को हमने एनएच घोटालों की जांच सीबीआई से कराने के मामले में यू—टर्न लेते देखा था। भ्रष्टाचार रोकने के लिए एक सशक्त लोकायुक्त का दावा तो मानों हवा—हवाई ही होकर रह गया और इस पर उन्हें कहते देखा गया कि जब भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है। खैर अब बारी सीएम पुष्कर सिंह धामी की है उन्होंने भर्तियों के भ्रष्टाचार के कैंसर को जड़ से समाप्त करने का बीड़ा तो उठाया है लेकिन वह मैदान में कब तक जमे रह सकते हैं यह जरूर देखना होगा क्योंकि एक तरफ राज्य के हित व युवाओं के भविष्य का सवाल है तो वहीं दूसरी ओर अपनी पार्टी के ही उन रसूखदारों को बचाने की चुनौती भी है। लेकिन इस खेल में भाजपा को नुकसान हो रहा है उनके नेताओं की संलिप्तता से पार्टी की छवि खराब हो रही है। जिनसे अब पार्टी पल्ला तो झाड़ रही है लेकिन दाग तो लग ही रहें है।

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