अनावश्यक खर्चों पर रोक

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बीते कुछ दिनों से अनावश्यक सरकारी खर्चों पर रोक लगाने का प्रयास करते दिख रहे हैं अभी बीते दिन उन्होंने एक अधिकारी एक सरकारी गाड़ी का प्रावधान लागू किया था। आम तौर पर कई सरकारी विभागों के काम देखने वाले सचिव स्तर के अधिकारी कई कई सरकारी गाड़ियां रखते है। अधिकारियों द्वारा सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है। दशकों से यह परंपरा जारी है अपने निजी काम के लिए उनके द्वारा सरकारी गाड़ियों का उपयोग किया जाता है। ठीक वैसे ही अभी चंद रोज पहले ही यह आदेश जारी कर सरकारी कार्यक्रम होटलों और निजी स्थानों पर आयोजनों पर रोक लगाई गई थी। सीएम का कहना है कि इस तरह के आयोजन मुख्य सेवक सदन में आयोजित किए जाएं तथा इस कार्य संस्कृति को जिला और तहसील स्तर तक लागू किया जाए। इससे सरकारी धन की बचत होगी। सरकार द्वारा एक और आदेश जारी करते हुए मुख्य सचिव ने सरकारी बैठकों में चाय के चलन पर रोक लगा दी है। उनका कहना है कि अधिकारी बैठकों के परिणामों पर ध्यान दें बैठकों में चाय परोसने की परंपराएं गलत हैं यही नहीं बुके दिए जाने की परंपरा पर रोक लगा दी गई है। अगर देखा जाए तो यह प्रयास बहुत ही छोटे—मोटे प्रयास हैं लेकिन कहा जाता है कि बूंद बूंद से ही घड़ा भर जाता है। इस दृष्टिकोण से सूबे की वर्तमान सरकार के यह प्रयास सराहनीय कहे जा सकते हैं उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में जहां आपदा के समय भी नेता और अधिकारी आपदा राहत कार्यों में लगे हेलीकॉप्टरों में मौज मस्ती करते रहे हो वहीं अगर आज कोई सरकारी धन की बचत या दुरुपयोग को रोकने की कोशिश हो रही है तो यह एक सकारात्मक पहल ही कही जाएगी लेकिन इसके साथ—साथ यह भी सच है कि इस तरह की पहल दिखावा भर ही है। सरकारी धन का बड़ा दुरुपयोग तो अन्य तमाम मदों में देखा जाता है। स्व. एन.डी. तिवारी के कार्यकाल में जो राज्य मंत्रियों की परंपरा शुरू हुई थी वह अभी तक जारी है। हर एक सरकार के कार्यकाल में अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए दायित्व धारियों की फौज खड़ी कर दी जाती है उसका क्या उपयोग है और उस पर कितना खर्चा होता है? यह एक विचारणीय सवाल है क्या धामी सरकार इस परंपरा को भी खत्म करने का साहस दिखा पाएगी? ठीक वैसा ही एक मुद्दा है मंत्रियों विधायकों और अधिकारियों के विदेशी दौरों का। सरकारी कामकाज और योजनाओं के अध्ययन व शोध के नाम पर की जाने वाली यह मौज—मस्ती क्या उचित है? इन विदेशी दौरों पर होने वाले अनावश्यक खर्चे और सरकारी धन के दुरुपयोग को भी सरकार रोकने के बारे में कुछ विचार करेगी? यही नहीं अन्य कई ऐसे मद हैं जिन पर भारी भरकम खर्च किया जाता है। अगर सरकार वास्तव में सरकारी खर्चों को रोकना चाहती है तो तमाम ऐसे मदों पर रोक लगानी चाहिए तभी इसका कोई फायदा हो सकेगा।

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