मरता क्या न करता?

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सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। लोकतंत्र की परिभाषा यही है जनता का जनता के लिए जनता द्वारा चुना हुआ शासन। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में जनता ने राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास सहित उनके तमाम दफ्तरों पर कब्जा कर लिया। यह घटना भले ही विश्व राष्ट्रों के लिए खासकर उन देशों के लिए जहंा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली व्यवस्था है, एक चौंकाने वाली घटना तो है ही साथ ही उनके लिए एक बहुत बड़ा सबक भी है। सरकार जनहित के लिए होती है और जो सरकार अपनी जनता को सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती, उनकी मूल जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती उसे सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं रह जाता है। प्रधानमंत्री विक्रम सिंघे का आवास आक्रोशित जनता द्वारा फूंक दिया गया। राष्ट्रपति गोटवाया राजपक्षे खतरे की आहट सुनकर पहले ही अपने परिवार सहित राष्ट्रपति भवन से निकल चुके थे। दरअसल जनता के इस आक्रोश के पीछे श्रीलंका की वह बदहाल अर्थव्यवस्था तो अहम कारण है ही जिसकी वजह से श्रीलंका के आम आदमी को उसकी जरूरतों का सामान किसी भी कीमत पर नहीं मिल पा रहा था। लेकिन एक तरफ मुश्किलों में फंसी भूखी प्यासी आम जनता है और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की वह तस्वीरें भी है जो आपस में हंसी मजाक करते हुए कहकहा लगा रहे हैं। सोशल मीडिया में वायरल हो रही इन तस्वीरों को जनता भला कैसे बर्दाश्त कर पाती। नतीजतन जनता ने अपने कामकाज से अवकाश वाले दिन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवासों और दफ्तरों में धावा बोल दिया गया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों द्वारा भी इनका कोई अधिक प्रतिरोध नहीं किया गया क्योंकि वह भी स्थिति की संवेदनशीलता को जानते थे। पूरी दुनिया ने श्रीलंका की यह तस्वीरें देखी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि श्रीलंका वही देश है जो भले ही बहुत छोटा सा क्यों न सही लेकिन उसको खुशहाल देशों में शुमार किया जाता रहा है। इसलिए यह सवाल भी सबसे अहम और महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि यह खुशहाल और समृद्ध देश इतनी बड़ी बदहाली के दलदल में फंस गया। इसके पीछे सरकारों की वह नीतियां ही जिम्मेदार हैं जो लोकप्रियता बटोरने और सत्ता में बने रहने के लिए अपनाई गई। देश के लोगों से कम से कम टैक्स वसूली, टैक्स में राहत देने से भी श्रीलंका की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हुई। उसके ऊपर से श्रीलंका पर बढ़ता विदेशी कर जो खर्चों की भरपाई के लिए लिया गया तथा उसका भुगतान संतुलन नहीं बनाए रखा गया। एक अहम कारण भ्रष्टाचार भी रहा जो आमतौर पर श्रीलंका ही नहीं अन्य तमाम देशों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। लेकिन इस बदहाली की मार अब श्रीलंका की आम और गरीब जनता को झेलनी पड़ रही है। श्रीलंका की समस्या की जहां तक समाधान की बात है तो वह चुटकी बजाते ही संभव नहीं है। भले ही सत्ता के शासन पर कोई भी आसीन रहे इस संकट से उबरने में उसे कई सालों का समय लगेगा। वह भी तभी संभव है जब विश्व के अन्य राष्ट्र भी श्रीलंका की मानवीय मदद को आगे आएं। लेकिन श्रीलंका जैसी स्थिति अन्य किसी के सामने पेश न आए इसे लेकर दूसरों को इससे सबक लेने की जरूरत है वरना जनता मरता क्या न करता की स्थिति में कुछ भी कर सकती है।

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