वो हवा हो गए, देखते देखते

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इस देश की राजनीति भी क्या हवा हवाई है? हवा का एक झोंका आता है और किसी को भी सत्ता की कुर्सी पर बैठा देता है। हवा का एक झोंका आता है और किसी को भी सत्ता शीर्ष से उतार फेंकता है जो कल तक चरण छूते थे व इन बड़े नेताओं को खास मौके पर मिलकर उनका मार्गदर्शन लेने जाते थे ऐसा लगता है कि वह मार्गदर्शकों की सूची में डालने का उपहास उड़ाने आए हैं, किसी मार्गदर्शन के लिए नहीं आए और न उन्हें कोई सम्मान देने आए हैं। राजनीति ही नहीं व्यवहारिक जीवन का भी यह बड़ा सच है वर्तमान दौर में सम्मान सिर्फ दिखावा भर रह गया है। 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा 70 में से 57 सीटें जीतकर सत्ता में आई तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को हवा के झोंके ने सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। भाजपा में ऐसा अक्सर देखा जाता रहा है कि संघ के सेवकों को कई बार इतना कुछ मिल जाता है जिसकी उन्हें भी कल्पना नहीं होती है। सूबे के कई पूर्व मुख्यमंत्री इस कृपा का लाभ उठा चुके हैं। यह अलग बात है कि वह कितने समय तक लाभ उठा पाते हैं। त्रिवेंद्र सिंह भी पीएम मोदी की तरह यह माने बैठे थे कि कम से कम 15 साल तो इस कुर्सी पर अब मैं ही रहूंगा। लेकिन वह भूल गए थे कि हर कोई शिवराज चौहान नहीं हो सकता जो बार—बार ऐसा मौका हासिल कर सके। 4 साल बाद कुर्सी क्या गई मानों त्रिवेंद्र सिंह का सब कुछ चला गया। 2022 के चुनाव से पहले से ही यह चर्चा थी कि भाजपा उन्हें संगठन में कोई अहम जिम्मेवारी दे सकती है लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। उनके चुनाव न लड़ने के एलान पर सभी हैरान थे पता चला कि उन्हें तो पार्टी टिकट ही नहीं दे रही थी जिसकी खबर लगने पर उन्होंने चुनाव न लड़ने का प्रचार कर दिया। चुनाव प्रचार से भी पार्टी ने अलग थलग ही रखा या सिर्फ डोईवाला तक सीमित रखा। अब एक बार फिर चर्चा शुरू हुई है कि त्रिवेंद्र सिंह को राज्यसभा भेजा जा सकता है लेकिन रुड़की की महिला डॉ कल्पना सैनी ने उनसे यह अवसर भी छीन लिया जिसके बारे में त्रिवेंद्र सिंह रावत कल्पना भी नहीं कर सकते थे। अभी भाजपा की दो दिवसीय कार्यसमिति की जो बैठक बीते कल संपन्न हुई है उसमें तमाम पूर्व सीएम दिखाई दिए पूर्व व वर्तमान सांसद, मंत्री सभी शामिल थे राज्य की सरकार और संगठन से जुड़े तमाम कार्यकर्ता और नेता दिखाई दिए लेकिन नहीं दिखे तो सिर्फ त्रिवेंद्र सिंह रावत नहीं दिखे। भाजपा के प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम से लेकर केंद्रीय मंत्री अजय भटृ तक इस सवाल के जवाब पर सफाई देते दिखे। कुछ दिन पूर्व हवा उड़ी थी कि भाजपा ने उन्हें अपने मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया है। कार्यसमिति की बैठक में कुछ भाजपाई यह चुटकी भी लेते दिखे कि त्रिवेंद्र सिंह ने राजनीति से सन्यास ले लिया। शायद इन लोगों को यह पता नहीं है कि राजनीति होती ही हवा हवाई है। कब किसकी हवा होती है और कब कौन हवा हो जाए इसके बारे में अच्छे—अच्छे राजनीति के पंडित भी नहीं जानते। आइए लाल कृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी को भी इस बहाने थोड़ा याद कर लेते हैं क्योंकि बड़े दिनों से उनका नाम भी नहीं सुना है।

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