देश अपनी आजादी के 75 वर्ष की उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटकर अमृत महोत्सव मना रहा है। केंद्रीय सत्ता पर आसीन भाजपा ने इस बात का प्रचार करते—करते कि उससे पूर्व वाली सरकारों ने कुछ किया ही नहीं, विपक्ष को नकारा साबित कर हाशिए पर धकेल दिया गया है। मेक इन इंडिया, एक भारत श्रेष्ठ भारत और अब आत्मनिर्भर भारत जैसे विमर्श आज चर्चाओं के केंद्र में है। सरकार की सामर्थ्य देखिए कि उसने देश के 80 करोड़ लोगों को 2020—21 में मुफ्त राशन उपलब्ध कराया और किसी को भी कोरोना काल में भूखा नहीं सोने दिया। देश में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बकौल पीएम 2.5 करोड़ परिवारों को सरकार ने पक्के सस्ते घर बनवा कर दिए हैं। उज्जवला योजना के जरिए करोड़ों परिवारों को मुफ्त में रसोई गैस कनेक्शन दिए गए और महिलाओं को चूल्हे के धुंए से मुक्ति दिलाई गई है। स्वच्छ भारत योजना के तहत घर—घर शौचालय निर्माण कराया गया है। हर घर नल हर घर जल योजना के तहत स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। यह तो सिर्फ उदाहरण भर है वृद्धों—विधवाओं—छात्राओं विकलांगों सहित तमाम लोगों को पेंशन और बेरोजगारों तथा किसानों—मजदूरों को अनेक योजनाओं के जरिए सम्मान राशियों का वितरण कर उनकी मदद की जा रही है। अभी समाचार आया था कि केंद्र सरकार 2024 तक मुफ्त राशन देने की योजना पर विचार कर रही है खैर 2024 तक नहीं अभी इस योजना का विस्तारीकरण सिर्फ 6 माह तक किया गया है। सवाल यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी अगर देश का आम आदमी अपनी मेहनत के दम पर खुद को इतना भी सशक्त नहीं कर सका है कि वह अपने लिए दाल—आटा जुटा सके या बीमार पड़ने पर अपना इलाज करा सके, अपने लिए पीने का पानी का इंतजाम कर सके या एक शौचालय बनवा सके अथवा एक रसोई गैस का कनेक्शन ले सके या एक छत बना सके तब फिर हम किस आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं। अगर आज देश की आबादी को अपने पेट भरने और जरूरी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है तो उसके लिए आजादी के और आजादी के अमृत महोत्सव के क्या मतलब रह जाते हैं। आम आदमी के लिए सरकार द्वारा 5 लाख तक स्वास्थ्य बीमा सुविधा दी जा रही है। जरा सोच कर देखिए कि देश के कितने लोग हैं जो वर्तमान दौर के महंगे इलाज और बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन कर सकते हैं। एक दूसरा सवाल यह है कि देश की आधी से भी अधिक आबादी जो सरकार की मेहरबानी ऊपर जी रही है उसे इस दीन हीन अवस्था में किसने पहुंचाया है? एक अन्य सवाल यह है कि इस देश में कितने नेता है जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं? सच यह है कि देश की आधी आबादी को गरीब बनाने के लिए कोई और नहीं देश के नेता ही जिम्मेदार है। और जो गरीब है उन्हें दीन हीन बनाए रखा जाना किसी षड्यंत्र से कम नहीं है उन्हें दी जाने वाली हर एक मदद का उद्देश्य वोट लेने का एक टूल है जिससे कोई भी गरीब जिंदा तो रह सकता है लेकिन वह कभी आत्मनिर्भर नहीं बन सकता है। और जब देश का गरीब आत्मनिर्भर नहीं बनेगा आत्मनिर्भर भारत की बात सिर्फ एक शगुफा ही कही जा सकती है।