आगाज तो अच्छा है, अंजाम खुदा जाने

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भले ही मुद्दा नया न सही लेकिन मुश्किल जरूर है, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में जिस यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की बात कही थी अब सत्ता में आने पर उन्होंने इसे अपनी सर्वाेच्च प्राथमिकता पर रखा है। कल अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में उनके द्वारा राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है। इसका ड्राफ्ट तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज की अध्यक्षता में समाज के विभिन्न वर्गों के जानकार लोगों की समिति गठित करने का निर्णय लिया गया। यह अलग बात है कि कमेटी कब तक गठित होगी कब वह सरकार को अपनी रिपोर्ट देगी और कब सरकार उसे कानूनीजामा पहना पाएगी? और वह ऐसा करने में सफल होगी भी या नहीं? क्योंकि यह मामला अत्यंत ही पेचीदा है सभी धर्मों के लिए एक ही तरह का कानून हो यह सुनने में बहुत आसान लगता है लेकिन जिस देश या प्रदेश में तमाम धर्मों के लोग रहते हो और वह अपने—अपने धर्मों की परंपराओं तथा रीति—रिवाजों के हिसाब से जीते रहे हो उन्हें कानून बनाकर एक जैसा करने पर बाध्य करना आसान नहीं है देश में मुस्लिम, ईसाईयों व पारसियों द्वारा अपने पर्सनल ला के अनुसार चलने की व्यवस्था है जबकि जैन, बौद्ध, सिख और हिंदुओं के लिए हिंदू सिविल लॉ काम करता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड भाजपा के एजेंडे का 1989 से ही रहा है जब उसने इसे पहली बार अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था। खास बात यह है कि तब से लेकर अब तक भाजपा किसी भी राज्य में ऐसा नहीं कर पाई है। जबकि केंद्र से लेकर राज्यों तक उसकी सरकारे रही है ऐसे में पुष्कर सिंह धामी के लिए राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना बड़ी चुनौती वाला काम है। यह ठीक है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्यों को समान नागरिक कानून लागू करने का अधिकार देता है और कानूनविदों की राय में इसमें कोई बुराई नहीं है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अपनी सांस्कृतिक सभ्यता के संरक्षण के लिए इसे जरूरी मानते हैं प्रदेश में बढ़ रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन को वह भविष्य के लिए बड़ा खतरा मानते हैं और इसे रोकने के लिए समान नागरिक संहिता को एक कारगर उपाय के रूप में देख रहे हैं। इसके लागू होने पर सरकार विवाह, तलाक, संपत्तियों के अधिकार व उत्तराधिकार संबंधी मामलों पर नजर रख सकेगी। मुख्यमंत्री की यह पहल कितनी सार्थक होती है यह सवाल सबसे अहम है। 2017 में जब त्रिवेंद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता संभाली थी उन्होंने भी भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात की थी तथा 100 दिनों में लोकायुक्त गठन का इरादा जताया था लेकिन 5 साल बीतने के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा था इसलिए देखना होगा कि धामी का यूनिफॉर्म सिविल कोड किस मुकाम तक पहुंच पाता है। हां उनकी पहल जरूर सराहनीय कही जा सकती है।

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