धामी की ताजपोशीः भितरघातियोेंं को बड़ा सबक

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धामी की हार के पीछे कहीं भितरघात तो नहीं
दलगत राजनीति करने वालों से सतर्क रहना जरूरी

देहरादून। अपने मुख्यमंत्री और पार्टी प्रत्याशियों को हराकर कुछ हासिल करने व बड़े बनने के आदी हो चुके सूबे के नेताओं के लिए पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी एक बड़ा सबक है।
दो दशक के उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो आपको ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जब अपने मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव में भितरघात कर उन्हें हराने का काम किया जाता रहा है। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जो नेता दूसरों की खींची गई लाइन को मिटाकर स्वयं की लाइन को बड़ा बनाने का प्रयास करते हैं वह भले ही कुछ समय के लिए अपने प्रयासों में सफल होने पर खुश हो सकते हैं लेकिन उनकी यह खुशी दीर्घकाल तक टिकी नहीं रह सकती है।
भाजपा हाईकमान ने भले ही पुष्कर सिंह धामी की हार को स्वाभाविक हार मान लिया हो या फिर खुद पुष्कर सिंह धामी ने भी इस हार को अपने क्षेत्र पर ध्यान व समय कम देने का कारण बताकर पीछे छोड़ दिया हो, लेकिन इतने बड़े अंतर से हुई उनकी हार के कारणों को भाजपा द्वारा तलाशा जाना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि भाजपा के लोगों ने ही उन्हें हराया हो, जैसे पूर्व सीएम (मेजर जनरल) बीसी खंडूरी को हराया था। उस समय भी भाजपा को उसकी एक सीट पर हार के कारण सत्ता से हाथ धोना पड़ा था तथा बी सी खंडूरी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से।
हमने देखा है कि यह भितरघात और दलगत राजनीति की बीमारी से सिर्फ भाजपा पीड़ित नहीं है कांग्रेस का भी हाल वैसा ही रहा है। पूर्व सीएम हरीश रावत की दोनों सीटों से चुनाव लड़ने के बाद हुई हार और काग्रेस के विभाजन (2016) के पीछे यह भितरघात और दलगत राजनीति ही सबसे बड़ी वजह रही है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही इस बीमारी से ग्रसित रहे हैं। 2022 के वर्तमान चुनाव में भितरघात और दलगत राजनीति का जो खेल हुआ है वह कितने व्यापक स्तर पर हुआ है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज कांग्रेस के नेता भी चीख्ंा—चींख कर कह रहे हैं कि भितरघात तो हुआ है अन्यथा हम यह चुनाव हारते नहीं। वहीं भाजपा के विधायक व प्रत्याशी तो मतदान के बाद अपनी पार्टी के नेताओं के नाम ले लेकर भितरघात के आरोप लगाते देखे गए हैं। ऐसे में अगर धामी को भी भितरघात के जरिए ही हराया गया हो तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हो सकती।
भाजपा हाईकमान ने पुष्कर सिंह धामी को हार के बाद भी फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया जाना उन भितरघातियों के लिए एक बड़ा सबक भी हो सकता है जो इस बार भी सीएम की कुर्सी का सपने पाले बैठे थे। भाजपा और धामी को ऐसे नेताओं से सतर्क रहने की जरूरत है।

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