यह कैसा आपदा प्रबंधन?

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पहाड़ का जीवन हमेशा से ही पहाड़ जैसी मुश्किलों से भरा रहा है पर्वतीय क्षेत्रों में आपदाओं का अविराम सिलसिला जारी रहता है। उत्तराखंड राज्य को बने दो दशक का समय बीत चुका है लेकिन आपदा प्रबंधन में उत्तराखंड शासन कितने आगे बढ़ पाया है? इस सवाल का जवाब शुन्य ही है। बीते कल धारचूला में अतिवृष्टि के कारण हुई भारी तबाही तो महज इसका एक उदाहरण भर है आसमान से बरसी इस आफत में दर्जनभर मकान ध्वस्त हो गए और 7 लोगों की जान चली गई। हैरानी इस बात की है कि इस हादसे के 12 घंटे बाद एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंच सकी। यह बात सहज सोची जा सकती है कि मलबे में दबा कोई व्यक्ति आखिर कितनी देर तक जीवित रह सकता है? आपदा प्रबंधन विभाग भले ही अपनी कार्यश्ौली में न्यूनतम रिस्पांस टाइम की बात को प्राथमिकता पर रखता हो लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। किसी भी हादसे के बाद अगर बचाव राहत कार्य में घंटे—2 घंटे से अधिक का समय लगता है तो फिर नुकसान न्यूनतम से बढ़कर अधिकतम हो जाता है या फिर यह कहा जाए कि ऐसे बचाव और राहत कार्य का कोई फायदा नहीं होता है तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है। धारचूला के जिस क्षेत्र में यह घटना घटित हुई उस क्षेत्र में तमाम सड़कों के बंद होने के कारण मदद जल्द न पहुंच पाने की बात सामने आई है। नेशनल हाईवे से लेकर न्यास घाटी रोड सहित क्षेत्र की सभी सड़कें बीते 15—20 दिनों से बंद पड़ी हैं जिन्हें अभी तक नहीं खोला जा सका है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि सरकार उनके मरने का इंतजार कर रही थी। राज्य सरकार के पास आपदा राहत कार्यों के लिए यूं तो अलग से अपना हेलीकॉप्टर तक है जिसका बखान आपदा प्रबंधन मंत्री धनसिंह रावत अक्सर करते रहते हैं लेकिन जुम्मा गांव जहां यह हादसा हुआ उस क्षेत्र में कोई एक ऐसा स्थान तक नहीं है जहां हेलीकॉप्टर को लैंड भी कराया जा सके। दरअसल राज्य मंत्री व अधिकारी बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन धरातल की हकीकत को समझने का प्रयास कतई नहीं करते जिसका खामियाजा आम जनता को भोगना पड़ता है। अभी बीते दिनों जोशीमठ क्षेत्र में हुई बादल फटने और ग्लेशियर टूटने की दो बड़ी घटना में राज्य का आपदा प्रबंधन फेल दिखाई दिया था। बिजली परियोजना की सुरंगों से शवों को निकालने में महीनों का समय लग गया था। इसलिए बीते कल विकास नगर जहां मलबे में दबकर एक बच्चे की जान चली गई तथा पिथौरागढ़ जहां सात लोगों की जीवन लीला समाप्त हो गई कोई नई बात नहीं है। धन सिंह रावत जैसे मंत्री जो बारिश को कहीं कम या ज्यादा कराने के लिए ऐप लांच कराने की बात कहकर अपना मजाक बनवा रहे हैं उनसे आप कैसे आपदा प्रबंधन की उम्मीद कर सकते हैं।

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