इश्क नचाए जिसको यार, वो फिर…

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इस बार इगास जैसा खास रहा है वैसा कभी नहीं रहा। राजधानी दून से लेकर अनिल बलूनी के पैतृक गांव नकोट तथा पूरे राज्य में लोक पर्व इगास इस बार पूरी धूमधाम से मनाया गया, घरों में पकवान बने, दीप जलाए गए, आतिशबाजी हुई, डोल दमाऊ की थाप पर महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को ही थिरकते नहीं देखा गया बल्कि नेता भी जमकर ठुमके लगाते देखे गए। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भ्ौलों खेला, तो गणेश जोशी व डा. हरक सिंह भी खूब नाचे। विनोद चमोली और सुनील उनियाल गामा से लेकर हरबंस कपूर और त्रिवेंद्र रावत व आप नेता कर्नल कोठियाल भी झूमते दिखे। अच्छा है उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति को जीवंत बनाने के प्रति लोग सजग बने और आने वाली पीढ़ियां इसके बारे में जाने समझे। सांसद अनिल बलूनी की यह पहल जो उन्होंने राज्य से पलायन रोकने के उद्देश्य से शुरू की गई थी दो सालों में अब एक राजनीतिक मुकाम हासिल कर चुकी है। बलूनी ने इस पहल को यह कहते हुए शुरू किया था कि प्रवासी उत्तराखंडी त्योहारों पर अगर अपने पैतृक गांव आकर त्यौहार व पर्व मनाना शुरू कर दें तो उससे पलायन रोकने में मदद मिलेगी। उनकी इस पहल से पलायन कितना रुक सकेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस बार इगास पर जो उत्साह राजनेताओं में देखने को मिला है उससे इतना तो साफ हो गया है कि उनकी इस पहल पर राजनीति का रंग पूरी तरह तारी हो गया है। इसका मुख्य कारण है चंद महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव। बदलते वक्त के साथ राजनीति के रंग भी अब हर रोज बदलते दिख रहे हैं। एक समय था जब धर्म और संस्कृति के नाम पर राजनीति करने वालों का विरोध किया जाता था लेकिन अब समय बदल चुका है अगर कोई दल या नेता एक बार किसी मंदिर—मस्जिद या धाम जाता है तो अन्य सभी नेता कई बार वहां जाते हैं अगर कोई देवी देवता के नाम का जयकारा लगाता है तो दूसरे नेता बार—बार वही नारा लगाते है। अब इन मुद्दों का विरोध नहीं होता बल्कि हर कोई दल व नेता स्वयं को दूसरों से बड़ा धार्मिक और सभ्य तथा सुसंकृत साबित करता है। भाजपा ने पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी के खिलाफ खूब प्रचार किया था कि वह जय श्रीराम से भी चढ़ती है जवाब में ममता बनर्जी ने भी खूब मंत्रोच्चारण शुरू कर दिया था। इन दिनों अयोध्या में तमाम नेता रामलला के दर्शनों के लिए जा रहे हैं। यह काम वह वोट पाने के लिए ही नहीं कर रहे हैं बल्कि वोटों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए कर रहे हैं। वोट की राजनीति का इश्क इन नेताओं को ऐसा नाच नचा रहा है कि वह अब मंदिर—मस्जिद और गुरुद्वारों में ही माथा नहीं टेकते फिर रहे हैं अपितु बीच बाजार खूब नाच रहे हैं। वोट के लिए किये जाने वाला यह नाच लोगों को खूब मनोरंजन करा रहा है। इगास पर लोक कला, लोक पर्व व संस्कृति की दुहाई देने वाले इन नेताओं से जनता पूछ रही है कि उन्हें पहले कभी इगास क्यों नहीं याद आया? ऐसा लगता है कि नेताओं के लिए महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य सेवाएं चुनावी मुद्दे नहीं रह गए हैं इसीलिए वह वोट के लिए इगास जैसे मुद्दों पर दोनों हाथ उठाकर नाच रहे हैं यह राजनीति भी क्या चीज है? जो नेताओं को नचा रही है और जनता को हंसा रही है।

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