सामाजिक सरोकारों से विरत राजनीति

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देश की आम जनता की चाहत तो हमेशा यही रही है कि उसके नेता सामाजिक सरोकारी राजनीति करें लेकिन नेताओं का आचरण इसके विपरीत ही रहा है वह हमेशा ही सामाजिक सरोकारों से विरत राजनीति करते रहे हैं। जिसके कारण वह जनता का विश्वास खो बैठते हैं। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले चुनावों से पूर्व तमाम राजनीतिक दल और उनके नेता जिन मुद्दों को हवा देने में जुटे हुए हैं वह सामाजिक सरोकारों से कोसों दूर है। देश की नंबर वन पार्टी बन चुकी भाजपा और उसके नेता हिंदुत्व हवाई जहाज पर सवार हो चुके हैं तो सपा और बसपा जैसे विपक्षी दल भी जातीय और क्षेत्रवाद के तरकश से तीर साधने में जुट गए हैं। अखिलेश यादव का जिन्ना गुणगान मुस्लिम वोट बैंक की तुष्टीकरण राजनीति का प्रयास नहीं तो और क्या है? वहीं मायावती का दलित और पिछड़ों का वही पुराना अलाप राजनीति का आधार बना हुआ है। इन दिनों देश की राजनीति में हिंदुत्व कटृरवादी और सॉफ्ट हिंदुत्व जैसे शब्दों का प्रयोग आम बात हो चुका है। आजादी के बाद से देश की राजनीति जिस धर्म और जातिगत समीकरणों की धुरी पर घूम रही है उसमें कोई बदलाव सात दशक बाद भी होता नहीं दिख रहा है चुनावी मंचों से आज भी वही धार्मिक उन्माद भरी नारों की गूंज सुनी जा सकती है। भले ही देश के नेता धर्म और राजनीति को अलग—अलग बताकर उनके घालमेल को गलत ठहराते रहे हो लेकिन सच इसके एकदम विपरीत है इन नेताओं ने धर्म और राजनीति का जो घोल बीते कुछ दशकों में तैयार किया है वह देश की राजनीति का एक ऐसा रंग बन चुका है कि अब उसे अलग—अलग किया जाना संभव ही नहीं है। देश के नेता आम आदमी की समस्याओं को सुनने जानने और समझने में अपना समय लगाने की बजाए मठ, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में माथा टेकने में लगा रहे हैं तथा चुनावी मंचों से मंत्र उच्चारण कर रहे हैं इसकी जरूरत उन्हें शायद कभी नहीं पड़ी होती अगर वह सामाजिक सरोकारों की राजनीति करते होते। आज देश की जनता जिन समस्याओं से जूझ रही है अगर इन नेताओं का राजनीतिक उद्देश्य सामाजिक सरोकारों का रहा होता तो शायद जनता की यह समस्याएं भी बहुत हद तक खत्म हो चुकी होती। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने अभी राज्य स्थापना दिवस पर दून और हल्द्वानी में नशा मुक्ति केंद्र खोलने की घोषणा की। सवाल यह है कि क्या नशा मुक्ति केंद्र खोलने से समाज को नशा मुक्त बनाया जा सकता है? अगर नहीं तो फिर क्या सीएम धामी नशा मुक्ति केंद्र खोलकर क्या युवाओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि तुम खूब नशा करो अगर कोई समस्या होगी तो हम उसका उपचार करायेंगे। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति ने प्रदेश ही नहीं देश भर के युवाओं को नशे की अंधेरी खाई में धकेल दिया देश और समाज के भविष्य पर मंडराता यह गंभीर खतरा देश के किसी भी नेता को क्यों नजर नहीं आ रहा है? इसका कारण राजनीति का सामाजिक सरोकारों से विरत होना नहीं तो और क्या है? ऐसी एक नहीं दर्जनों समस्याएं हैं जो देश और समाज के विकास पर सवाल खड़े कर रहे हैं किंतु राजनीति को इससे कोई सरोकार नहीं है।

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