नेताओं की कथनी और, करनी और

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बीते कल राज्य स्थापना दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री धामी ने जिस तरह से सौगातोंं की बरसात की तथा आने वाले चार सालों में राज्य को देश का उत्कृष्ट और आदर्श राज्य बनाने का दावा किया गया उनसे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि उनकी सरकार ने पांच साल में सत्ता में रहते हुए ऐसा कुछ क्यों नहीं किया? या फिर उनकी सरकार ने जनता के उत्थान के लिए क्या—क्या किया है? चुनाव से पूर्व सभी नेता सर्वोत्तम जनसेवक क्यों हो जाते हैं। 2017 के अपने दृष्टि पत्र में आपने जो सौ दिन के अंदर लोकायुक्त गठन का वायदा किया था उसका क्या हुआ। अब जब चुनाव आने वाले हैं तो आपको सबका साथ सबका विकास चाहिए लेकिन कोई आपका विश्वास क्यों करें? क्या आप जनता को महंगाई, बेरोजगारी से निजात दिलाने और पारदर्शी शासन—प्रशासन के अपने पुराने वायदों को भूल चुके हैं? भाजपा और उसकी सरकार को भले ही यह नजर न आ रहा हो कि आम आदमी की जो समस्याएं 5 साल पहले थी वह आज भी वैसी ही है जैसे पहले थी, यही नहीं यह समस्याएं और अधिक विकराल हो गई हैं। चुनाव से पूर्व की जाने वाली इन घोषणाओं का उद्देश्य या तो आमजन को भ्रमित करना है या फिर अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने का प्रयास। चुनावी बेला में मुख्यमंत्री और सरकार आज कुछ भी करने को तत्पर है। वह चाहे महिलाओं की सुरक्षा व स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो या युवाओं की बेरोजगारी और उघमियों के व्यवसाय से संबंधित समस्याएं हो। अब सरकार बिना मांगे हर वर्ग को वह सब कुछ देने को तैयार है जो बीते 4 सालों में उसे मांगने पर भी नहीं मिल सका था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि उनकी सरकार राज्य में खाली पड़े लाखों पदों को भरने जा रही है। राज्य के सभी गांवों को 2025 तक मुख्य सड़कों से जोड़ दिया जाएगा। सवाल यह है कि भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार ने बीते 5 सालों में कितने गांवों तक सड़कें पहुंचाई हैं। कितने लोगों को नौकरियां दी है। भ्रष्टाचार पर कितनी लगाम लगाई है, लोकायुक्त गठित करना तो दूर भाजपा सरकार ने तो लोकायुक्त गठन की बात को यह कहकर नकार दिया कि अब राज्य में जब भ्रष्टाचार ही नहीं है तो फिर लोकायुक्त की क्या जरूरत है? महाकुंभ में जो कोरोना टेस्टिंग में घोटाला हुआ वह क्या था? राज्य के आंदोलनकारी राज्य गठन के 20 साल बाद भी अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं अब आप चुनाव के कारण उनकी पेंशन बढ़ाकर उन्हें चुप रहने को कह रहे हैं। पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आने की बात करने वाले मुख्यमंत्री से क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अब तक इस पर क्या काम किया अगर किया है तो पहाड़ के गांव खाली क्यों हो गए? चुनाव के दौरान बड़ी बातें करना और बड़े—बड़े दावे और वादे करना बहुत आसान होता है जबकि जमीन पर कुछ करना उतना ही मुश्किल भी। सत्ता में बैठे लोगों को अगर सबका साथ और सबका विश्वास चाहिए तो कथनी और करनी के फर्क को मिटाना ही होगा।

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