कानून बना नहीं, विवाद शुरू

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  • राज्य का कानून दूसरे राज्यों में लागू होने पर बखेड़ा
  • धाम व मंदिरों के नाम का दुरुपयोग अन्य राज्यों में कैसे रोकेगा कानून?

देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति और नेता भी अजब—गजब है। किसी भी मुद्दे पर कुछ भी कह देना या छोटी सी छोटी बातों को अपनी बड़ी उपलब्धि बताकर उसे प्रचारित करना उनकी आदत में शुमार है। धामों व मंदिरों के नाम का दुरुपयोग रोकने को कानून बनाने का अभी प्रस्ताव भर कैबिनेट की बैठक में लाया गया है लेकिन इसे देश के अन्य तमाम राज्यों में लागू करने का प्रचार भाजपा नेताओं ने करना शुरू कर दिया है। अभी कानून बना भी नहीं है लेकिन इससे पहले ही इसे लेकर विवाद और बहस शुरू हो गई है।
बीते 10 जुलाई को सीएम धामी ने दिल्ली में केदारनाथ मंदिर का भूमि पूजन किया था जिसके लिए केदारनाथ धाम के नाम का जिक्र किए जाने से विवाद खड़ा हो गया था। मामले ने तूल पकड़ा तो सरकार ने अपने बचाव के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाया गया। जिसमें धामों व मंदिरों के नाम तथा ट्रस्ट और संचालन समितियों के नाम का दुरुपयोग रोकने के लिए कानून बनाने की बात कही गई थी। अभी इसका मसौदा तैयार किया जाना है जिसके बाद इसे कैबिनेट से मंजूरी के बाद सदन के पटल पर रखा जाना है तथा सदन की मंजूरी के बाद इस पर राज्यपाल की मंजूरी की मोहर लगनी है, लेकिन यह कानून जब बनेगा तब बनेगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद महेंद्र भटृ का कहना है कि इसे देश के अन्य सभी राज्यों में भी लागू किया जाएगा।
संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार कोई राज्य सरकार जो कानून बनाती है उसे वह अपने ही राज्य में लागू कर सकती है। लेकिन महेंद्र भटृ इसे अन्य राज्यों में भी लागू करने की बात कह रहे हैं। इस मुद्दे पर संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का कहना है कि राज्य सरकार अपने बनाए हुए कानून को अपने ही राज्य में लागू कर सकती है लेकिन साथ ही वह भटृ के बचाव में यह भी कहते हैं कि इसका परीक्षण करेंगे कि क्या यह दूसरे राज्यों में भी लागू हो सकता है। अन्य कोई राज्य सरकार अगर इसे लागू करना चाहे तभी इसे दूसरे राज्य में लागू किया जा सकता है।
इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि उत्तराखंड के धामों और मंदिरों व ट्रस्टों के नामों का दुरुपयोग अगर दूसरे राज्यों में होता है तो फिर यह कानून उसके दुरुपयोग को भला कैसे रोक पायेगा, ऐसी स्थिति में इस कानून को लागू करने का फायदा भी क्या होगा देखना होगा कि अब इस नए विवाद का क्या पटाक्षेप होगा?

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