भारी पड़ सकती है सामाजिक और राजनीतिक लापरवाही
देहरादून। आजकल हर तरफ सिर्फ कोरोना की चर्चा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना की तीसरी लहर को लेकर आज दिल्ली में अपने मंत्रियों के साथ चर्चा कर रहे हैं। टीवी चैनलों पर कोरोना केसों का विश्लेषण हो रहा है। चुनावी रैलियों पर रोक लगाने पर परिचर्चाओं का दौर जारी है। न्यायपालिका द्वारा केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से चुनाव टालने की अपील की जा रही है। चारों ओर हल्ला मचा है आ गई कोरोना की तीसरी लहर। लेकिन राजधानी दून की यह तस्वीर पूछ रही है कि कहां है कोरोना? मास्क और सामाजिक दूरी को तो सभी ने त्याग दिया है।
सवाल यह है कि सामने खड़ी मौत और मौत के भय से कोई समाज इस कदर लापरवाह कैसे हो सकता है? लेकिन तस्वीरें झूठ नहीं बोलती हैं। इन दिनों हर बाजारों और जलसे—जुलूस—प्रदर्शनों में हम और आप भीड़ की जो रेलम पेल देख रहे हैं वह डराने वाली है, और यह लापरवाही का एक उदाहरण भी है। यह हाल तब है जब हम कोरोना की एक नहीं दो—दो लहरों के दौरान दिल दहला देने वाली तस्वीरों को देख चुके हैं। दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन न मिल पाने से तड़प—तड़प कर दम तोड़ते लोग और नदियों में तैरती वह लावारिस लाशें तथा एक साथ धूं—धूं कर जलती चिताएं, क्या उन दर्द भरे क्षणों को आसानी से भुलाया जा सकता है।
समाज की इस लापरवाही और सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर उमड़ती भीड़ की तस्वीरों को देखकर तो यही लगता है। लेकिन लोगों को न अपनी जान की चिंता है और न जहान की कोई फिक्र। लोग सब कुछ भूल चुके हैं और हमने अपने अतीत से कोई भी सबक नहीं लिया है। भले ही सत्ता में बैठे लोग और राज्यों की सरकारों द्वारा तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों के बड़े—बड़े दावे किए जा रहे हो लेकिन धरातल पर यह तैयारियां क्या है? इसके सच को हम वैक्सीनेशन की गति और टेस्टिंग की गति व सीमाओं पर चेकिंग के नाम पर की जा रही खानापूर्ति से भी समझ सकते हैं। जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उन राज्यों में टेस्टिंग कम से कम करा कर यह दिखाया जा रहा है कि कोरोना का कोई प्रभाव इन राज्यों में नहीं है। उत्तर प्रदेश में नए वेरियंट के अभी तक सिर्फ दो मामले सामने आए हैं जबकि दिल्ली में ओमीक्रोन के लगभग 200 मामले मिल चुके हैं। यह लापरवाही आने वाले समय में कितनी महंगी पड़ेगी आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल नेता राजनीतिक दल रैलियों में मस्त हैं और आम आदमी भी संभावित खतरे से बेखबर है।