एक तरफ चुनावी रैलियां, एक तरफ पाबंदियां

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रैलियों में हजारों की भीड़, समारोहों में सिर्फ 200
रात के कर्फ्यू का क्या है, कोरोना से सम्बन्ध

देहरादून। कोरोना की एसओपी सिर्फ आम आदमी के लिए क्यों? राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए कोरोना के नियम कानून क्यों नहीं? यह सवाल एक बार फिर आम आदमी के मन को मथ रहा है। ओमीक्रोन का डर दिखाकर तमाम राज्यों की सरकारों और जिला प्रशासनोंं ने आम आदमी पर पाबंदियों का शिकंजा कसना शुरू कर दिया है वहीं जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वहां नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा लाखों की भीड़ ही रैलियों में नहीं जुटाई जा रही है बल्कि कोरोना गाइड लाइनों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है।
उत्तराखंड की राजधानी दून में अब किसी भी आयोजन में 200 से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई है। बाहर से आने वाले लोगों के लिए वैक्सीनेशन की डबल डोज या फिर 72 घंटे पहले की आरटीपीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट को अनिवार्य कर दिया गया है। यही नहीं अब होटल व रेस्टोरेंट दस बजे रात तक ही खोले जाने के आदेश हैं। वही मास्क और सामाजिक दूरी को भी अनिवार्य कर दिया गया है। सवाल यह है कि यह नियम कानून सिर्फ आम लोगों के लिए क्यों हैं? राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए क्यों नहीं। जहां कोरोना नियमों का कोई पालन नहीं किया जाता है। राजनीतिक रैलियों में हजारों की भीड़ की इजाजत क्यों तथा शादी समारोह में 100 की पाबंदी क्यों? यह किसी की भी समझ से परे है।
क्या कोरोना रात में ही सड़कों पर निकलता है जबकि सड़कों पर भीड़ तो दिन में रहती है। ऐसी स्थिति में रात के कर्फ्यू का क्या औचित्य है? बीते दिनों जब कोरोना वायरस की लहर अपने पीक पर थी उस दौरान पश्चिम बंगाल के चुनावों के दौरान नेताओं की रैलियां जारी थी, ठीक वैसा ही अब भी देखा जा रहा है कि जब ओमी क्रोन का खतरा सर पर मंडरा रहा है तब पांच राज्यों में फरवरी में होने वाले चुनाव के दौरान तीसरी लहर के पीक पर होने की बात कही जा रही है। अगर इस चुनाव में रैलियां होंगी तो क्या उनमें भी 100 लोगों की पाबंदी लागू की जाएगी।
भले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जान है तो जहान है की बात कहते हुए चुनावी रैलियों पर रोक और चुनाव दो माह टालने की अपील केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग से की गई हो लेकिन इस पर कोई गौर किया जाएगा इसकी संभावना दिखाई नहीं दे रही है, सवाल यह है कि आम आदमी की जिंदगी की सुरक्षा की जिम्मेवारी जिनके कंधो पर है वही अगर उनकी जान से खिलवाड़ करते हैं तो उन पर कार्रवाई कौन करेगा।

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