अग्निपथ की आग

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सेनाओं में भर्ती के लिए रक्षा मंत्रालय ने जो अग्निपथ का तरीका तलाशा है उससे देश के युवा सहमत नहीं हैं। यह देश भर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों का पहला सच है। विपक्षी राजनीतिक दलों का जो समर्थन मिल रहा है वह राजनीति का हिस्सा है यह इसका दूसरा सच है। सरकारी स्तर पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जो सख्त कार्रवाई की जा रही है वह दमन का हथियार है। सरकार अपने फैसले को जबरन बेरोजगार युवाओं पर थोपने का प्रयास कर रही है यह इसका चौथा सच है। पांचवा सच यह है कि सरकार ने यह फैसला बहुत जल्दबाजी में लिया और इस पर पूरा होमवर्क नहीं किया गया है। योजना को घोषित किए जाने के बाद जब विरोध के स्वर उग्र हुए तो सेना प्रमुख और सरकार को कई ऐसी घोषणा करनी पड़ी जिसमें उन्हें 10 फीसदी आरक्षण की बात भी शामिल है। अग्निपथ योजना की घोषणा के समय यह भी साफ नहीं किया गया था कि अब सेनाओं में भर्ती का यही माध्यम होगा अन्य दूसरा कोई माध्यम नहीं। सही मायने में यह सेना में सैनिकों की नहीं टे्रनी सैनिकों की भर्ती है जिन्हें 4 साल बाद सरकार चाहे तो रखे न चाहे तो न रखे। अग्निपथ के जरिए अग्निवीर बनने वाले युवाओं के मन में अपने भविष्य को लेकर तमाम तरह की जो आशंकाए हैं उनका परिणाम है यह विरोध प्रदर्शन। बेरोजगार युवा जो सेना में भर्ती की सालों से राह देख रहे है उनका आक्रोश है यह प्रदर्शन। देश में बेरोजगारों की जो फौज खड़ी हो गई है उसका कारण है यह विरोध प्रदर्शन। सरकार ने अब इसकी आयु सीमा में बढ़ोतरी की है पर फिर 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की गई है इस पर पहले विचार क्यों नहीं किया गया अगर सेना के अधिकारी व सरकार इस योजना पर चार—पांच साल से काम कर रहे थे तो इस ओर क्यों नहीं सोचा गया कि 4 साल की नौकरी के बाद यह युवा करेंगे क्या। अब भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री इन युवाओं को पुलिस व अन्य नौकरियों में वरीयता देने की बात कर रहे हैं तथा उनके द्वारा अपने अधिकारियों को भी युवाओं को इसके फायदे व कायदे समझाने में लगाया गया है। मुख्यमंत्रियों द्वारा पूर्व सैनिकों से संवाद किया जा रहा है तथा पूर्व सैनिक संगठनों से संपर्क कर उन्हें युवाओं को समझाने का जिम्मा सौंपा जा रहा है। अच्छा होता कि इस योजना को लांच करने से पूर्व सरकार यह सब काम कर लेती। लेकिन भाजपा सरकार को तो अचानक फैसले सुना कर देशवासियों को चौंकाने की आदत पड़ी हुई है नोटबंदी और कोरोना काल में अघोषित कर्फ्यू लगाने की तरह। भले ही उसके परिणाम कुछ भी हो? यह फैसला विपक्ष और युवाओं को विश्वास में लेकर किया गया होता तो आज इस तरह के हालात का सामना शायद नहीं करना पड़ता। कृषि कानूनों की तरह अब सरकार एक बार फिर जिद पर अड़ चुकी है अग्निपथ योजना को वापस नहीं किया जाएगा वही जो इसका विरोध कर रहे हैं वह भी आंदोलन पर अड़े हैं। ऐसे हालात में राजनीति होना भी स्वाभाविक है, वह भी हो रही है। लेकिन अधर में लटका है तो वह है देश के युवा बेरोजगारों का भविष्य। उसका कोई समाधान होता नहीं दिख रहा है।

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