देश की सियासत इन दिनों यात्राओं पर निकल पड़ी है। भले ही स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अब तक नेताओं की इन यात्राओं का लंबा इतिहास है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी मार्च से लेकर भाजपा की विकसित भारत संकल्प यात्रा और राहुल गांधी की भारत जोड़ो सामाजिक न्याय यात्रा तक अनेक यात्राएं इतिहास का हिस्सा रह चुकी है। आज अयोध्या में जो राम मंदिर का निर्माण हुआ है उसके लिए लालकृष्ण आडवाणी ने भी रथ यात्रा निकाली थी। इनमें बहुत सारी यात्राएं ऐसी रही है जिनके पूर्व परिणाम यात्रा करने वाले और संयोजकों को पहले ही पता होता है। उदाहरण के लिए हम विकसित भारत संकल्प यात्रा को ही ले सकते हैं क्या देश का हर आम आदमी इस बात से वाकिफ नहीं है कि भारत को एक दिन विकसित राष्ट्र बनना ही है। इन दिनों दो मुद्दे राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में हैं पहला है प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम वहीं इसके इतर विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की सामाजिक न्याय यात्रा है जो अभी चार दिन पूर्व मणिपुर से शुरू हुई है जो मार्च में मुंबई जाकर समाप्त होनी है। लेकिन उनकी इस यात्रा का कोई खास प्रचार प्रसार नहीं दिख रहा है। मीडिया में भी उनकी इस यात्रा को कवरेज के लिहाज से सिर्फ एक खबर के तौर पर दिखाया या छापा जा रहा है। जैसे इसकी औपचारिकता निभाना निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जरूरी हो। राहुल गांधी की इस यात्रा को लेकर जो भाजपा के नेताओं द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं उन्हें भी अच्छी खासी जगह मीडिया में मिल रही है। राहुल गांधी की यात्रा को राजनीतिक यात्रा बताकर जो सवाल उठाने वाले हैं उनसे कोई यह पूछने वाला नहीं है कि ऐसी कौन सी यात्रा है जो राजनीतिक नहीं है। जब देश की सियासत राजनीतिक यात्रा पर ही चल रही हो तो इसमें विशेष क्या है राहुल गांधी ने इससे पूर्व बीते साल कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी। जहां तक उनकी इन यात्राओं के उद्देश्यों की बात है वह एकदम स्पष्ट है देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठी भाजपा जिस तरह विपक्ष की बात सुनने तक को तैयार नहीं है और देश की संसद को विपक्ष विहीन बनाने की कोशिश की जा रही है तब कांग्रेस जो विपक्ष में बैठी है उसके पास अपने उत्तरादायित्वों के निर्वहन का क्या जरिया रह जाता है अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए। सिर्फ पदयात्रा और आम लोगों के बीच जाकर उनसे संवाद करना उनकी बात सुनना और उन्हें अपनी बात समझाना। यह जनता की मर्जी है कि वह उनकी बातों को कितना सुनती या समझती है अगर नहीं भी सुनती या नहीं समझती है तब भी कोई बात नहीं। विपक्षी दल के नेता होने के नाते राहुल गांधी अपना उत्तरदायित्व निभाने की कोशिश तो कर रहे हैं। कल देश की जनता किसी भी मुश्किल हालात के लिए कम से कम उन्हें जिम्मेदार तो नहीं ठहराएगी। इस यात्रा का उद्देश्य जो लोग 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ रहे हैं वह गलत है। उनकी इन यात्राओं का उद्देश्य देश में लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखना है। वह जानते हैं कि जब देश में लोकतंत्र कमजोर हुआ है ऐसी यात्राओं से उसे मजबूती और सवंृद्धि मिली है। देश की जनता जो इस दौर की मुफ्त की राजनीति के कुच्रक में फंसी हुई है और जिसे अपने छोटे—छोटे फायदे ही बड़े फायदे का सौदा नजर आ रहे हैं उसे आज राहुल गांधी की यात्रा के मायने और मतलब समझ में न आए लेकिन दो बातें तय है कि जनता को कभी न कभी वह समझ में जरूर आयेगी जो आज राहुल गांधी समझाना चाह रहे हैं तथा दूसरी यह कि उनकी यह यात्रा जो कठिन स्थितियों व विपरीत मौसम में की जा रही है बेकार नहीं जाएगी इससे लोकतंत्र और अधिक मजबूत होगा।