अतिक्रमण एक अनंत समस्या

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उत्तराखंड की धामी सरकार द्वारा सरकारी और वन भूमि पर अवैध कब्जों के खिलाफ इन दिनों व्यापक स्तर पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है। धामी सरकार ने इस अभियान की शुरुआत अवैध धार्मिक संरचनाओं को बुलडोजर से जमीदोज करने से की गई। अब तक सरकार अपने इस अभियान के तहत सैकड़ो एकड़ जमीन को मुक्त करा चुकी है। अब सरकार द्वारा तमाम जिला मुख्यालयों में अतिक्रमण हटाने का काम किया जा रहा है इस साल मानसूनी आपदा के कारण राज्य की सड़कों के किनारे किए गए अतिक्रमण पर अब सरकार की नजर है। केदारनाथ के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में हुई बड़ी भूस्खलन की घटना के बाद सरकार की नजर यात्रा मार्गों पर सड़कों के किनारे बड़ी संख्या में हुए अतिक्रमण पर है। वहीं राज्य की तमाम नदियों और नालों पर अतिक्रमण की सबसे अधिक मार पड़ी है। नदियों और नालों तथा खालों के जल प्रवाह क्षेत्र में तमाम छोटे बड़े और कच्चे पक्के मकानों का अंधाधुंध निर्माण किए जाने से अब करोड़ों लोगों की जान संकट में है। खास बात यह है कि इस अतिक्रमण में सरकार भी पीछे नहीं रही है। राजधानी दून में दर्जनों ऐसी आवासीय कालोनियां है जो नदियों व नालों के जल प्रवाह क्षेत्र में है। रिस्पना नदी के किनारे बने राज्य के विधानसभा भवन से लेकर दूरदर्शन केंद्र और कोरोनेशन अस्पताल की इमारतें नदियों के जल प्रवाह क्षेत्र में बनी हुई है। भले ही अब सरकार द्वारा 19—20 हजार मकानों को अतिक्रमण क्षेत्र में बताया जा रहा हो लेकिन सच यह है कि सूबे की राजधानी की कमोवेश 50 फीसदी आबादी अतिक्रमण वाले क्षेत्र में बसी हुई है। बीते 4 साल पूर्व हाईकोर्ट द्वारा राजधानी दून से सभी तरह के अतिक्रमण को हटाने के निर्देश दिए गए थे। इस आदेश को क्रियवंटित करते हुए राजधानी के तमाम प्रमुख मार्गों पर जोर—शोर से अभियान भी शुरू हुआ था लेकिन महीना भर चले अभियान के दौरान जब यह कार्यवाही जब अवैध बस्तियाें तक पहुंची और भवनाें पर लाल निशान लगे जाने लगे तो राजनीतिक हड़कंप की स्थिति पैदा हो गई। विधायक और मंत्री भी अपने—अपने क्षेत्र में जनता के साथ जाकर खड़े हो गए और धरने प्रदर्शन शुरू हो गए और अंततः यह अभियान दम तोड़ने पर विवश हो गया। राजधानी दून की मलिन बस्तियों को लेकर राज्य गठन से लेकर अभी तक राजनीतिक महासंग्राम जारी है मगर इसका कोई हल न तो सरकार ढूंढ सकी है और न अदालत निकाल सकी है। पौड़ी, नैनीताल, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी से लेकर अल्मोड़ा व हरिद्वार तक अवैध अतिक्रमण को भले ही महाअभियान जारी है और सरकार तथा मुख्यमंत्री धामी भले ही अंतिम अतिक्रमण हटाये जाने तक कार्रवाई जारी रहने का दावा कर रहे हो लेकिन अतिक्रमण की इस अनंत गाथा का कोई अंत संभव नहीं है। शहर, सड़क व जंगलों से लेकर नदियों और नालों तक फैले इस अतिक्रमण को कोई भी सरकार अपने पूरे कार्यकाल में सैकड़ो बुलडोजर चलाकर भी नहीं हटा सकती है। जब भी अतिक्रमण के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई शुरू होती है तो जन विरोध के जन सरोकार तो सामने आकर खड़े ही हो जाते हैं साथ ही राजनीतिक हित भी इसकी राह का रोड़ा बन जाते हैं अब अतिक्रमणकारी भूस्खलन या नदी के जल प्रभाव की चपेट में आकर या भू धसाव के कारण मरते हैं तो मरे उनकी मौतो को भी रोक पाना शासन प्रशासन के बस में नहीं है।

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