सांप्रदायिकता का जहर

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बात चाहे उस मणिपुर की हो जो तीन माह से भी अधिक समय से सांप्रदायिक हिंसा की आग में धू धू कर जल रहा है या फिर हरियाणा की उस नूंह की सांप्रदायिक हिंसा की जहां ब्रज मंडल शोभायात्रा पर हुई एक सुनियोजित हमले के दौरान व्यापक स्तर पर हिंसा और आगजनी हुई और अब विहिप द्वारा फिर शोभायात्रा निकालने के ऐलान के बाद यहां न सिर्फ भारी तनाव की स्थिति बनी हुई है या फिर यूपी के एक मिशनरी स्कूल की जहां छात्रों द्वारा ब्लैक बोर्ड पर जय श्री राम का नारा लिखे जाने पर स्कूल प्रबंधकों की आपत्ति के बाद एबीवीपी छात्र नेताओं द्वारा स्कूल में धरना—प्रदर्शन और हनुमान चालीसा का पाठ किया गया। यह घटनाएं तो मात्र एक उदाहरण है ऐसी तमाम घटनाएं बीते कुछ समय से देश के कोने—कोने से आ रही हैं। अभी बीते कल ही की बात है जब मणिपुर में कुछ हिंसक व आगजनी की घटनाओं के बाद गस्ती सुरक्षा बलों पर एक समुदाय द्वारा हमला कर सुरक्षा बलों के हथियार लूट लिए गए। सवाल यह है कि जिस मणिपुर हिंसा को लेकर संसद में अविश्वास प्रस्ताव तक लाया गया और गृहमंत्री व प्रधानमंत्री ने कहा कि मणिपुर के हालात सामान्य है क्या वह मणिपुर अब शांत है और वहां सब कुछ ठीक है। अगर नहीं है तो सरकार में बैठे लोग क्यों झूठ बोल रहे हैं और वहां शांति बहाली के कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे हैं? अथवा मणिपुर के हालात इतने बेकाबू हो चुके हैं कि वहां की सरकार व केंद्र सरकार हालात पर काबू पाने में असफल हो चुकी है। या फिर जानबूझकर इसे नजरअंदाज किया जा रहा है। नुहू में भी प्रशासन की अनुमति न दिए जाने के बाद भी विहिप अगर शोभायात्रा निकालने पर अड़ा हुआ है तो प्रशासन उसे क्यों नहीं रोक पा रहा है यहंा एक बार फिर इंटरनेट सेवाएं बंद कर भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती तथा स्कूल कॉलेज और बाजारों को बंद करने की जरूरत क्यों पड़ी। हमें याद है कि एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद गौ रक्षा के नाम पर कुछ अराजक तत्वों द्वारा गुंडागर्दी करने की बात पर कड़ी आपत्ति जताई गई थी। नूहू की घटना की पृष्ठभूमि में तथाकथित गोरक्षक द्वारा एक समुदाय विशेष के दो लोगों को जिंदा जला देने की घटना ही है। अभी जिस स्कूल में जय श्री राम का नारा लिखे जाने की बात सामने आई है वह साफ तौर पर यही बताती है कि अब शिक्षण संस्थानों को भी धार्मिक और सांप्रदायिक राजनीति का अखाड़ा बनाने का प्रयास कुछ विशेष संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे हैं। खुले में नमाज पढ़ने की बात हो या फिर उसके जवाब में हिंदु संगठनों के द्वारा हनुमान चालीसा पढ़ने की, स्कूल कॉलेज में बुर्का पहन कर आने की हो या फिर ब्लैक बोर्ड पर जय श्री राम का नारा लिखे जाने की। इन सभी घटनाओं की पृष्ठभूमि में सिर्फ और सिर्फ वह धार्मिक और संाप्रदायिक उन्माद की राजनीति ही है जिसका इस्तेमाल देश के राजनीतिक दल और नेता करते आ रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व देश में फिर एक ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है जो सांप्रदायिक आधार पर वोटो का ध्रुवीकरण सुनिश्चित कर सके। कुछ दलों और नेताओं को चुनाव जीतने का यही सबसे मुफीद और आसान तरीका दिखाई देता है। समाज में इस सांप्रदायिक जहर का क्या असर हो रहा है और इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे भले ही इसे लेकर देश का सर्वाेच्च न्यायालय तक अपनी चिंता जता चुका हो लेकिन देश के नेताओं और राजनीतिक दलों को इसकी कतई भी चिंता नहीं है। उन्हें सिर्फ अपनी और सत्ता में बने रहने से ही सरोकार है।

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