महंगाई पर भारी पड़ती राहत

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खुदरा और थोक महंगाई दर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने तथा खाघ वस्तुओं की दरों में भारी उछाल और बैंकों की ब्याज दर में बढ़ोतरी के बीच केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में वैट में थोड़ी सी कटौती कर आम आदमी को राहत देने का प्रयास किया गया है। पेट्रोल के दामों में 9.50 और डीजल के दाम में की गई 7 रूपये प्रति लीटर की कमी से कुछ खास राहत इसलिए भी नहीं मिलती दिख रही है क्योंकि अभी भी पेट्रोल की कीमतें कुछ शहरों में 100 के पार है तो कुछ में 100 से दो—चार रूपये कम है। भले ही सत्ता में बैठे लोग इसे बड़ी राहत के तौर पर देख रहे हो लेकिन हकीकत यही है कि इस कटौती के बाद भी यह कीमतें मार्च 2022 के स्तर पर ही आ सकी हैं। बीते 2 माह में जितनी कीमतें बढ़ी थी यह कटौती सिर्फ उसके बराबर ही है। वही उज्जवला योजना के लाभार्थियों के लिए सरकार ने भले ही 2 रूपये प्रति सिलेंडर की कीमतें कम कर दी गई हो लेकिन उन आम आदमी को कोई राहत नहीं दी गई है जो अभी घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के 1022 रूपये चुका रहा है। केंद्र सरकार पर इस राहत के एवज में भले ही दो लाख करोड़ रुपए का घाटा हो रहा हो लेकिन आम आदमी के लिए यह राहत ऊंट के मुंह में जीरा जैसी ही साबित होगी जिसकी वजह है उस पर पड़ती चौतरफा महंगाई की मार। प्रधानमंत्री मोदी भले ही अन्य क्षेत्रों से भी यह अपेक्षा कर रहे हो कि वह भी बढ़ती महंगाई को कम करने में सहयोग करें जिससे आम आदमी को राहत मिल सके। लेकिन यह संभव नहीं है। क्योंकि जिन उत्पादों और सेवाओं के दाम बढ़ चुके हैं वह कम होने वाले नहीं हैं बात चाहे लोहे, सीमेंट और रेता बजरी की हो या फिर किराए और माल भाड़ा वृद्धि की अथवा होटल और रेस्तरां के खाने की जिसकी कीमतें एक बार बढ़ गई तो बढ़ गई उन्हें पेट्रोल—डीजल की कीमतें कम करके फिर नीचे लाया जाना संभव नहीं है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि महंगाई के लिए जिन वैश्विक स्थितियों को कारण बताया जा रहा है वह भी खत्म नहीं होने वाली है। इस बात की क्या गारंटी है कि अब पेट्रोल डीजल के दाम और नहीं बढ़ेंगे। इसलिए अगर आप यह सोचे बैठे हैं कि अब सरकार जाग गई है इसलिए आपको इस महंगाई से निजात मिल जाएगी तो यह सिर्फ आपका या किसी का भी सिर्फ मुगालता ही है। विश्व भर में गेहूं जो सबसे प्रमुख खाघान्नों में शुमार होता है तथा पूरा बेकरी मार्केट जिस पर टिका हुआ है, को लेकर जो मारामारी देखी जा रही है तथा खाघ तेलों की कीमतें जिस रिकॉर्ड स्तर पर जा चुकी हैं वह आने वाले समय के खाघ संकट का ही संकेत है। केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल—डीजल पर वैट में कटौती के बाद कर्नाटक महाराष्ट्र और गुजरात तथा ओडिसा ने भी राज्यों के टैक्स में कटौती कर पेट्रोल डीजल की कीमतों को कुछ और कम करने की कोशिश की है। लेकिन इन कोशिशों को सिर्फ एक प्राथमिक ट्रीटमेंट ही माना जा सकता है। जो महंगाई के बोझ से मरे जा रहे आम व गरीब लोगों को थोड़ी सी राहत तो दे सकता है उनके अच्छे दिन नहीं ला सकता।

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